Monday, September 15, 2025

हनुमान चालीसा हिन्दी

 

श्री हनुमान चालीसा


मूल दोहा

हिंदी

१ . 

श्रीगुरु चरन सरोज रज , निजमन मुकुरु सुधारि। 

बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।

श्री गुरु चरण-कमल रज , निज  मन दर्पण सुधार करें  । 

श्री रघुवीर का निर्मल  यश का वर्णन करूँ , जो चार फलों (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) प्रदान करें।।

२. 

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

मैं स्वयं को बुद्धिहीन समझकर, पवनपुत्र का स्मरण करता हूँ।

मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें, और सभी कष्टों को दूर करें।।

३. 

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

जय हो हनुमान, जो ज्ञान और गुणों के सागर हैं,

और तीनों लोकों में अपनी कीर्ति से प्रकाश फैलाते हैं।।

४. 

राम दूत अतुलित बल धामा।

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

अतुलनीय बल वाले रामदूत , 

अंजनि-पुत्र हे पवनसुत 

५. 

महाबीर बिक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी।।

महावीर वज्र के समान अंग वाले, 

कुबुद्धि को दूर कर सुबुद्धि के संग वाले ।।

६. 

कंचन बरन बिराज सुबेसा।

कानन कुण्डल कुँचित केसा।।

सोने जैसा सुंदर रूप और वेश है,

कानों में कुंडल और घुंघराले केश हैं।।

७. 

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे।

कांधे मूंज जनेउ साजे।।

हाथों में वज्र और ध्वजा विराजते हैं ,

कंधे पर मूंज का जनेऊ सुशोभित है।।

८. 

शंकर सुवन केसरी नंदन।

तेज प्रताप महा जग वंदन।।

शंकर के अवतार और केसरी नन्द  ,

तेज और प्रताप  महा जगत वंदन  ।।

९. 

बिद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर।।

विद्यावान, गुणी अति  चतुर ,

राम काज  करने के लिए सदा आतुर ।।

१०. 

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया।।

जो राम चरित्र सुनने का आनंद लेते हैं,

जिसके राम, लक्ष्मण और सीता मन में बसते हैं।।

११. 

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।

बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

सूक्ष्म रूप में सीता को दर्शन दिया,

भयानक रूप मे लंका जलाया।।

१२. 

भीम रूप धरि असुर संहारे।

रामचन्द्र के काज संवारे।।

विकराल रूप मे  राक्षसों का संहार किया,

श्री रामचंद्र के सारे कार्यों को पूरा किया।।

१३, 

लाय सजीवन लखन जियाये।

श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।

संजीवनी बूटी लाकर आपने लक्ष्मण को जीवित किया,

तब श्री राम ने प्रसन्न होकर आपको हृदय से लगा लिया।।

१४. 

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

राम ने की बहुत बड़ाई,

भरत जैसे प्यारे भाई ।।

१५. 

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।

अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।

शहश्र  मुख आपका यश गाते हैं,

ऐसा कहकर श्री राम ने आपको गले लगा लिया।।

१६. 

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।

नारद सारद सहित अहीसा।।

सनक आदि ऋषि, ब्रह्मा और अन्य मुनि, 

नारद और देवी सरस्वती, आपके गुणों का गान करते हैं।


१७. 

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।

कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

यम, कुबेर और दिक्पाल भी, 

आपके यश का वर्णन नहीं कर सकते।।

१८. 

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

सुग्रीव पर आपने उपकार किया, 

उन्हें राम से मिला राज्य मिल गया।।

१९. 

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।

भए सब जग जाना।।

विभीषण आपका मंत्र मानकर

लंकेश्वर बना जो जानता सारा संसार।।

२०. 

जुग सहस्र जोजन पर भानु।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

सहस्र योजन दूर सूर्य को, 

मीठा फल समझकर निगल लिया 

२१. 

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

प्रभु राम की अंगूठी को मुख में रखकर, 

 समुद्र लांघना आश्चर्य नहीं ।।

२२. 

दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

संसार के जितने भी कठिन काम हैं,

आपकी कृपा से वे सभी सरल हो जाते हैं।।

२३. 

राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

राम के द्वार के रखवाले ,

आपकी आज्ञा के बिना कोई अंदर नहीं जा सकता।।

२४. 

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।

तुम रच्छक काहू को डर ना।।

सभी सुख पाता तुम्हारी शरणा  

तुम  रक्षक हो तो क्यों डरना ।।

२५. 

आपन तेज सम्हारो आपै।

तीनों लोक हांक तें कांपै।।

आप अपने तेज को स्वयं ही संभाल सकते हैं,

आपकी एक दहाड़ से तीनों लोक कांपते हैं।।

२६. 

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।

महाबीर जब नाम सुनावै।।

भूत-पिशाच निकट नहीं आते ,

महाबीर जब नाम सुनाते ।।

२७. 

नासै रोग हरे सब पीरा।

जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।

वीर हनुमान का नाम निरंतर जपने से

सभी रोग और पीड़ाएं नष्ट हो जाती हैं ।।

२८. 

संकट तें हनुमान छुड़ावै।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

जो मन, कर्म वचन से ध्यान करे 

 हनुमान हर संकट दूर करें ।। 


२९. 

सब पर राम तपस्वी राजा।

तिन के काज सकल तुम साजा।।

राजा राम सबसे महान तपस्वी हैं,

उनके सभी काम आपने पूरे किए हैं।।

३०. 

और मनोरथ जो कोई लावै।

सोई अमित जीवन फल पावै।।

जो कोई भी मनोकामना करें 

वही  जीवन के असीमित फलों करें ।।

३१. 

चारों जुग परताप तुम्हारा।

है परसिद्ध जगत उजियारा।।

आपका प्रताप चारों युगों में है,

आपका प्रकाश सारे संसार में है।।

३२. 

साधु संत के तुम रखवारे।

असुर निकन्दन राम दुलारे।।

साधु-संतों के रक्षक हैं, 

असुर  विनाशक राम के प्यारे हैं।।

३३. 

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।

अस बर दीन जानकी माता।।

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।

वरदान दिया जानकी माता ।।

३४. 

राम रसायन तुम्हरे पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा।।

राम भक्ति-रस आपके पास है, 

आप सदा रघुनाथ के सेवक हैं,

३५. 

तुह्मरे भजन राम को पावै।

जनम जनम के दुख बिसरावै।।

आपके भजन से राम मिलते हैं, 

जन्मों-जन्मों के दुःख दूर होते हैं।।

३६. 

अंत काल रघुबर पुर जाई।

जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।

अंत समय में आप रामधाम को जाते हैं,

और जहाँ जन्म होता है, वहाँ हरिभक्त कहलाते हैं।।

३७. 

और देवता चित्त न धरई।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

और देवता का ध्यान न करें तो भी । 

हनुमान सेवा से ही सब सुख मिलें ।। 

३८. 

सङ्कट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जो कोई भी हनुमान वीर का स्मरण करता है, 

उसके संकट और पीड़ाएं दूर हो जाती हैं।। 


३९. 

जय जय जय हनुमान गोसाईं।

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

जय, जय, जय हनुमान, गोसाईं,

कृपा करें गुरुदेव की तरह ।।

४०. 

जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बन्दि महा सुख होई।।

जो कोई यह पाठ सौ बार करता है,

वह बंधन से मुक्त होकर बहुत सुख प्राप्त करता है।।

४१. 

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

जो भी यह हनुमान चालीसा पढ़ता है,

उसे सिद्धि प्राप्त होती है, इसके साक्षी स्वयं गौरीश (भगवान शिव) हैं।।

४२. 

तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।

तुलसीदास सदा हरि के सेवक हैं,

हे नाथ, मेरे हृदय में निवास कीजिए।।

४३. 

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

पवनसुत, जो संकट को हरने वाले हैं, और मंगलकारी रूप हैं,

हे देवों के राजा राम, लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास करें।।



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