Saturday, July 26, 2025

महात्मा गांधी के जीवन-सूत्र


गांधीजी के जीवन, दर्शन और नेतृत्व पर आधारित इन स्रोतों का गहन विश्लेषण उनके सिद्धांतों, सामाजिक विचारों और प्राकृतिक जीवन शैली पर प्रकाश डालता है। गांधीजी का मानना था कि आत्मिक उन्नति और सच्चे स्वराज्य के लिए व्यक्ति को अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखना, प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करना और दूसरों की सेवा करना आवश्यक है।

1. स्वास्थ्य और प्राकृतिक जीवन शैली

गांधीजी का स्वास्थ्य के प्रति दृष्टिकोण बहुत मौलिक था, जो आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के बजाय प्रकृति के करीब रहने और सरल आहार अपनाने पर केंद्रित था।

  1. आधुनिक शिक्षा और शारीरिक ज्ञान: गांधीजी मानते थे कि "आधुनिक तालीम का हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता। शरीर से हमें सदा ही काम पड़ता है, मगर फिर भी आधुनिक तालीम से हमें शरीर का ज्ञान नहीं-सा होता है।" वे शारीरिक ज्ञान के महत्व पर जोर देते थे, जो आज की शिक्षा में उपेक्षित है।

  2. आहार-संबंधी सिद्धांत:अनाज और भूसी का महत्व: गांधीजी साबुत अनाज (हाथ चक्की में पीसा हुआ, बिना छाने) के उपयोग पर जोर देते थे, क्योंकि "अनाज की भूसी में सत्त्व और क्षार भी रहते हैं। दोनों बड़े उपयोगी पदार्थ हैं।" वे चावल को कम कूटने की सलाह देते थे ताकि उसकी भूसी बनी रहे।

  3. मसालों और नमक पर दृष्टिकोण: उनके अनुसार, शरीर को नमक जैसे आवश्यक क्षारों की आवश्यकता होती है, जो खाद्य पदार्थों में स्वाभाविक रूप से मौजूद होते हैं। "मगर उसे अशास्त्रीय तरीके से पकाने के कारण कुछ क्षारों की मात्रा कम हो जाती है, इसलिए वे ऊपर से लेने पड़ते हैं।" हालांकि, वे मिर्च, हल्दी, धनिया, जीरा, राई, मेथी, हींग जैसे मसालों के सेवन को अनावश्यक मानते थे, खासकर स्वाद के लिए। वे अनुभव के आधार पर कहते थे कि "शरीर को कई क्षारों की आवश्यकता रहती है। उनमें से नमक भी एक है।"

  4. चाय, कॉफी और कोको का निषेध: इन तीनों को शरीर के लिए अनावश्यक बताते हुए, वे चाय में मौजूद 'टैनिन' की हानिकारक प्रकृति को उजागर करते थे, जो "चमड़े को पकाने के काम में आती है। यही काम टैनिन वाली चाय आमाशय (Stomach) में जाकर करती है," जिससे पाचन शक्ति कम होती है।

  5. ताजे और प्राकृतिक भोजन का महत्व: गांधीजी का मत था कि भोजन "जितनी अधिक स्वाभाविक स्थिति में खाई जाय, उतना ही अधिक पोषण उसमें से हमें मिलता है।"

  6. मांसाहार और शराब: गांधीजी मांसाहार को मानव प्रकृति के अनुपयुक्त मानते थे, खासकर आत्म-संयम चाहने वालों के लिए। शराब को वे "सबसे निकृष्ट" और "एक बीमारी" मानते थे, जो मनुष्य के "शरीर, मन और बुद्धि को क्षीण करता है और पैसा बर्बाद करता है।" वे अफीम को भी प्रत्यक्ष जहर मानते थे, जो "मनुष्य को जड़ बना देती है।"

  7. पंच महाभूतों का महत्व: गांधीजी प्रकृति के पांच तत्वों - आकाश, वायु, जल, अग्नि (तेज) और पृथ्वी - को स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य मानते थे।

  8. आकाश (खुली जगह): वे खुली जगह में सोने और रहने की सलाह देते थे, क्योंकि "मनुष्य के सोने का स्थान आकाश के नीचे होना चाहिए।"

  9. वायु: स्वच्छ वायु के महत्व पर जोर देते थे, जिसका उपयोग वे शारीरिक रोगों के उपचार में भी करते थे।

  10. जल: पीने और नहाने दोनों के लिए पानी के शुद्धता पर जोर देते थे। वे गर्म पानी को आयोडीन की तरह ही "जंतुनाशक" मानते थे, लेकिन यह गरीबों के लिए अधिक सुलभ था। वे चादर-स्नान जैसे उपचारों का भी उपयोग करते थे, जो विभिन्न त्वचा रोगों में प्रभावी पाए गए थे।

  11. तेज (सूर्य का प्रकाश): गांधीजी "सूर्य-स्नान" को शरीर को शुद्ध और तंदुरुस्त बनाने का माध्यम मानते थे, खासकर कमजोर और रक्तहीन व्यक्तियों के लिए।

  12. मिट्टी: वे मिट्टी के लेप को कब्ज जैसी समस्याओं के लिए "अचूक" मानते थे, जिसमें मिट्टी को भिगोकर पेट पर पट्टी के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।

  13. अति आहार पर नियंत्रण: गांधीजी अल्पाहारी होने पर जोर देते थे, यह कहते हुए कि "शरीर आहार के लिए नहीं। आहार शरीर के लिए है।" उनका मानना था कि जो व्यक्ति स्वाद को नहीं जीत सकता, वह "कभी भी जितेंद्रिय नहीं हो सकता।"

  14. स्वच्छता: गांधीजी व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वच्छता के प्रबल समर्थक थे। वे मानते थे कि "स्वच्छता की या तो कोई समझ ही नहीं है और है तो बहुत विचित्र प्रकार की।" वे भारतीयों को अपने घरों और आसपास की जगहों को साफ रखने की सलाह देते थे।

2. गांधीजी का अध्यात्म और धर्म

गांधीजी का अध्यात्म उनकी नैतिकता और उनके जीवन के हर पहलू से जुड़ा था। वे धर्म को "साधारण स्वस्थ जीवन की मौलिक आवश्यकता" मानते थे।

  1. सत्य ही ईश्वर है: यह उनके दर्शन का केंद्रीय बिंदु था। "मेरे लिए सत्य ही ईश्वर है। और ईश्वर का कानून तथा ईश्वर इस अर्थ में भिन्न वस्तुएँ या तथ्य नहीं हैं, जिस अर्थ में कोई दुनियावी राजा और उसका कानून अलग अलग होते हैं। चूँकि ईश्वर स्वयं कानून है, इसीलिए यह कल्पना नहीं की जा सकती कि वह कानून को तोड़ता होगा।"

  2. अहिंसा: सत्य को प्राप्त करने का एकमात्र साधन अहिंसा को मानते थे। "सत्य को ईश्वर के रूप में पाना चाहते हैं, तब उसका एकमात्र अनिवार्य साधन प्रेम अर्थात् अहिंसा ही है।" वे पूर्ण अहिंसा का अर्थ "प्राणिमात्रा के प्रति दुर्भाव का पूर्ण अभाव" बताते थे। उनके अनुसार, "मनुष्य जाति के पास जो सबसे बड़ी शक्ति है वह अहिंसा ही है।"

  3. प्रार्थना: गांधीजी प्रार्थना को आंतरिक शांति और ईश्वर से जुड़ने का माध्यम मानते थे। वे कहते थे, "प्रार्थना के बिना भीतरी शांति नहीं मिलती।" उनका अनुभव था कि प्रार्थना "शारीरिक, मानसिक और आत्मिक हर प्रकार के कष्ट का अचूक इलाज है।"

  4. रामनाम: वे रामनाम के जाप को "अचूक उपाय" मानते थे, जो "शारीरिक, मानसिक और आत्मिक हर प्रकार के कष्ट का अचूक इलाज है।"

  5. धर्म परिवर्तन: गांधीजी मानव-दया के कार्यों की आड़ में धर्म-परिवर्तन को "अहितकर" मानते थे, क्योंकि धर्म एक "गहरा व्यक्तिगत मामला" है। वे स्वयं अपना धर्म बदलने की कल्पना नहीं कर सकते थे और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए नहीं कहते थे।

  6. मूर्ति पूजा: उनका मूर्ति पूजा में अविश्वास नहीं था।

  7. आत्मा और शरीर: वे मानते थे कि "शरीर स्वयं एक बूचड़खाना है, इसलिए मोक्ष और परमानंद देह से पूर्णतया मुक्त होने पर ही मिल सकते हैं।" वे शारीरिक मृत्यु को आत्मा के और करीब आने का अवसर मानते थे, क्योंकि "प्रियजन अधिक सच्चे रूप में जीवित रहते हैं और हमारे प्रेम को भी सच्चा बना देते हैं।"

  8. त्याग और इंद्रिय संयम: गांधीजी त्याग को आत्म-शांति प्राप्ति और धर्म की जड़ मानते थे। उनका मानना था कि सच्चा त्याग सुखद होता है और मनुष्य को ऊपर उठाता है। वे कहते थे कि "स्वाद को जिसने नहीं जीता, वह विषयों को नहीं जीत सकता।" इंद्रियों पर संयम और ब्रह्मचर्य उनके जीवन के मूल सिद्धांत थे। उनके अनुसार, ब्रह्मचर्य का अर्थ "आत्मा को पहचानने का मार्ग" और "मन, वचन और काया से विषय भोग का त्याग" था।

3. सामाजिक और राजनीतिक दर्शन

गांधीजी का सामाजिक और राजनीतिक दर्शन उनके नैतिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों से गहराई से जुड़ा था।

  1. स्वराज्य: गांधीजी स्वराज्य को केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं मानते थे, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था मानते थे जहाँ "प्रत्येक गांव को एक पूर्ण गणराज्य के रूप में आत्मनिर्भर होना चाहिए।" वे "रामराज्य" की अवधारणा में विश्वास करते थे।

  2. अस्पृश्यता उन्मूलन: गांधीजी अस्पृश्यता को एक पाप मानते थे और इसके उन्मूलन के लिए दृढ़ संकल्पित थे। वे कहते थे कि "अगर मुझे पता चले कि हिंदुशास्त्र सचमुच अस्पृश्यता के वर्तमान रूप का समर्थन करते हैं तो तो मैं हिंदु धर्म को छोड़ देता किंतु मैंने पाया है ऐसा नहीं है।"

  3. ग्राम स्वराज्य: गांधीजी भारत के भविष्य को गांवों के पुनरुत्थान में देखते थे। उनका मानना था कि "भूखों मरने वाले और बेकार रहने वाले जनता के सामने ईश्वर केवल एक ही स्वीकार्य रूप में प्रकट होने की हिम्मत कर सकता है।" वे ग्रामीण उद्योगों और कुटीर-उद्योगों के संगठन पर जोर देते थे ताकि ग्रामीणों को पूर्ण रोजगार मिल सके।

  4. वर्ग संघर्ष का खंडन: गांधीजी पूंजीपतियों को दुश्मन मानने के बजाय उन्हें न्यासी के रूप में अपनी संपत्ति का उपयोग करने का आह्वान करते थे। उनका मानना था कि वर्ग संघर्ष भारत के मूल स्वभाव के खिलाफ है और न्याय तथा बुनियादी हकों पर आधारित साम्यवाद संभव है।

  5. शारीरिक श्रम का महत्व: "रोटी के लिए श्रम करने" के नियम का पालन करने से समाज में क्रांति आ सकती है और मानव जीवन संघर्ष के बजाय परस्पर सेवा पर आधारित होगा।

  6. सत्याग्रह: गांधीजी का सत्याग्रह, जिसे वे "सत्य की शक्ति," "आत्मा की शक्ति," या "प्रेम की शक्ति" के रूप में जानते थे, बुराई और अन्याय के खिलाफ एक सक्रिय अहिंसक विरोध था। यह निष्क्रिय विरोध नहीं था, बल्कि "कमजोरों का हथियार नहीं" था। वे कहते थे कि "सत्याग्रही विवेकपूर्वक तथा स्वेच्छा से समाज के नियमों का पालन करता है।"

  7. चरखा: चरखा गांधीजी की राजनीतिक रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। यह ब्रिटिश आर्थिक प्रभुत्व को नकारने, स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ावा देने और अस्पृश्यों को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रतीक था। "अगर कोई जिला यदि खद्दर के लिए पूरी तरह संगठित है तो वह कष्ट सहने और सविनय अवज्ञा के लिए भी प्रशिक्षित है।"

  8. महिलाओं की भूमिका: गांधीजी स्त्री-पुरुष समानता के प्रबल समर्थक थे और मानते थे कि "स्त्री और पुरुष दोनों में एक ही आत्मा है।" उन्होंने महिलाओं को चूल्हे-चौके तक सीमित रखने का विरोध किया और उन्हें राजनीतिक व सामाजिक आंदोलनों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। वे बाल-विवाह और पर्दा-प्रथा के विरोधी थे।

  9. शिक्षा: गांधीजी प्रचलित शिक्षा पद्धति को "तमाशा भर" मानते थे, जो गांव के बच्चों की आवश्यकता पूरी नहीं करती थी। वे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर जोर देते थे, ताकि वे किताबी कीड़ा न बनें। वे शिक्षा में हाथ के काम (जैसे कताई और बुनाई) को शामिल करने के पक्षधर थे, ताकि विद्यार्थी आत्मनिर्भर बन सकें और विभिन्न विषयों का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर सकें।

  10. नेतृत्व: गांधीजी का नेतृत्व अहिंसा, दूरदर्शिता, साहस, करुणा, समर्पण और दृढ़ संकल्प पर आधारित था। वे मानते थे कि "हम में से प्रत्येक के भीतर नेतृत्व की क्षमता विद्यमान है किंतु उसे अंतर्निरीक्षण द्वारा ढूँढ कर उसका अनुशासित एवं समर्पित रूप से यत्न द्वारा पोषण किया जाना आवश्यक है।"

4. गांधीजी के जीवन की प्रमुख घटनाएँ और सीख

गांधीजी का जीवन स्वयं उनके सिद्धांतों का एक प्रयोग था, जिसमें कई महत्वपूर्ण मोड़ और सीखें शामिल थीं।

  1. दक्षिण अफ्रीका में अपमान और दृढ़ संकल्प: दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन से उतारे जाने और पगड़ी उतारने से इनकार करने जैसी घटनाओं ने उनके जीवन की दिशा तय की। "यह उनका नहीं बल्कि उनके देश के सम्मान का प्रश्न था।" उन्होंने वहीं रहकर अपनी कौम के अधिकारों के लिए लड़ने का निश्चय किया।

  2. स्व-निर्भरता की ओर: दक्षिण अफ्रीका में, जब उन्हें नाई ने बाल काटने से मना कर दिया और कपड़े धोने वाले ने महंगे दाम मांगे, तो उन्होंने स्वयं बाल काटना, कपड़े धोना और प्रेस करना शुरू कर दिया। वे अपनी पत्नी कस्तूरबा से भी ऐसा ही करने की अपेक्षा रखते थे।

  3. सेवा की भावना: गांधीजी आश्रम में ऐसे काम भी करते थे, जिन्हें आमतौर पर नौकर-चाकर करते थे, जैसे आटा पीसना और शौचालय साफ करना। उन्होंने अपने बेटों और कस्तूरबा को भी इन कामों में शामिल किया।

  4. खेड़ा और चंपारण सत्याग्रह: भारत लौटने पर, उन्होंने बिहार में नील की खेती की जबरन प्रथा को समाप्त करने और खेड़ा में लगान माफी के लिए सत्याग्रह आंदोलन चलाए, जिससे देश भर में अन्याय के खिलाफ संघर्ष की प्रतिध्वनि हुई।

  5. चौरी चौरा कांड: चौरी चौरा की घटना, जिसमें हिंसक भीड़ ने पुलिसकर्मियों को जिंदा जला दिया, गांधीजी के लिए "अहिंसा की अंतिम परीक्षा" थी। इस घटना के बाद उन्होंने असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया, यह दर्शाते हुए कि वे हिंसा के बिल्कुल खिलाफ थे।

  6. नोआखली की 'वन मैन आर्मी': विभाजन के दौरान नोआखली में सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए गांधीजी अकेले ही गांवों में गए, जहां उन्होंने हिंदू-मुस्लिम भाईचारे को बढ़ावा देने का प्रयास किया।

  7. लंदन गोलमेज सम्मेलन और चरखा: गांधीजी अपने फटे हुए शॉल को ओढ़कर, अपने गरीब देशवासियों के प्रतिनिधि के रूप में लंदन के गोलमेज सम्मेलन में शामिल हुए। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सामने चरखे के महत्व को बताया, यह एक ऐसा हथियार था जिसने ब्रिटिश आर्थिक नीतियों को चुनौती दी और भारतीय हस्तकला उद्योग को पुनर्जीवित किया।

5. गांधीजी की विरासत और प्रभाव

गांधीजी का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने विश्व भर में अहिंसक प्रतिरोध के आंदोलनों को प्रेरित किया।

  1. प्रेरणा का स्रोत: अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि "गांधी ने सिद्ध कर दिया कि केवल प्रचलित राजनीतिक चालबाजियों और धोखाधड़ियों के मजारी-भरी खेल के द्वारा ही नहीं, बल्कि जीवन के नैतिकतापूर्ण श्रेष्ठतर आचरण के प्रबल उदाहरण द्वारा भी मनुष्यों का एक बलशाली अनुगामी दल एक किया जा सकता है।"

  2. दुनिया पर प्रभाव: मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने गांधीजी को "मानव इतिहास में ऐसे पहले व्यक्ति" के रूप में वर्णित किया, जिन्होंने "ईसामसीह के प्यार के संदेश को उद्भासित कर उसे एक बड़े पैमाने में शक्तिशाली और प्रभावपूर्ण सामाजिक बल का रूप प्रदान किया।"

  3. वर्तमान प्रासंगिकता: गांधीजी के सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं। फिलिस्तीन में अब्दुल्ला अबू रहमेह जैसे कार्यकर्ता अहिंसक संघर्ष के लिए उनके विचारों का पालन कर रहे हैं।

  4. शांति और न्याय के लिए: गांधीजी का शांति, न्याय और समानता का संदेश आज भी आतंकवाद और युद्ध की विभीषिका के खिलाफ एक शक्तिशाली उपकरण है। वे मानते थे कि "बुराई का जवाब बुराई में देने से वह बुराई घटने के बजाय बढ़ती ही है।"


6. गांधीजी के स्वास्थ्य और जीवन शैली संबंधी दर्शन के मुख्य सिद्धांत क्या हैं?

गांधीजी का स्वास्थ्य दर्शन प्रकृति के पाँच तत्वों - आकाश, वायु, जल, तेज (प्रकाश), और पृथ्वी पर आधारित है। वे मानते थे कि इन तत्वों का सही उपयोग अच्छे स्वास्थ्य और आरोग्य की कुंजी है। भोजन के संबंध में, उनका मानना था कि इसे स्वाद के लिए नहीं, बल्कि दवा के रूप में लेना चाहिए, और केवल भूख लगने पर ही खाना चाहिए। उन्होंने अत्यधिक मसालेदार भोजन, चाय, कॉफी, और कोको जैसे पेय पदार्थों से बचने की सलाह दी, क्योंकि शरीर को इनकी आवश्यकता नहीं होती। तम्बाकू के सेवन को वे विनाशकारी मानते थे, जो न केवल आर्थिक रूप से महंगा है बल्कि व्यक्ति की सोचने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। वे सादा और संतुलित आहार, जैसे गाय का दूध, अनाज, पत्तेदार सब्जियां, नींबू, घी या मक्खन, और ताजे फल का समर्थन करते थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि प्रकृति से प्राप्त उपचार जैसे मिट्टी स्नान, पानी के उपचार (गीली चादर स्नान, गर्म पानी से सिकाई, भाप स्नान) दवाइयों से बेहतर और सुरक्षित होते हैं। वे शरीर को धूप में रखने (सूर्य स्नान) के महत्व पर भी जोर देते थे, क्योंकि सूर्य प्रकाश से जीवन और ऊर्जा मिलती है।

7. गांधीजी 'सत्याग्रह' को कैसे परिभाषित करते हैं और यह पारंपरिक विरोध से किस प्रकार भिन्न है?

गांधीजी के अनुसार, सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ 'सत्य के लिए दृढ़ रहना' है, लेकिन इसे 'सत्य की शक्ति', 'आत्मा की शक्ति' या 'प्रेम की शक्ति' के रूप में जाना जाता है। यह निष्क्रिय प्रतिरोध नहीं है, जिसे कमजोरों का हथियार माना जाता है, बल्कि यह बुराई और अन्याय के खिलाफ एक सक्रिय अहिंसक विरोध है। उन्होंने सत्याग्रह को 1907 में दक्षिण अफ्रीका के 'ब्लैक एक्ट' (एशियाई पंजीकरण अधिनियम) के विरोध में पहली बार प्रयोग किया, जिसकी प्रारंभिक अवधारणा 1906 में बनी। सत्याग्रह में साधन और परिणाम दोनों को समान महत्व दिया जाता है, उनका मानना था कि अच्छे साधनों से ही अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। यह हिंसा और घृणा को बढ़ावा नहीं देता, बल्कि प्रेम और सच्चाई के संदेश पर आधारित है। सत्याग्रह व्यक्ति को भय और आशंका से मुक्त करता है, और समाज में अहिंसा, आत्म-नियंत्रण, और निडरता को बढ़ावा देता है। यह बाहरी विरोध के बजाय आंतरिक परिवर्तन पर जोर देता है, और इसका उद्देश्य विरोधी को अपनी गलती का एहसास कराना है, उसे नष्ट करना नहीं।

8. गांधीजी का 'स्वदेशी' दर्शन क्या है और यह भारतीय समाज के लिए क्यों महत्वपूर्ण था?

गांधीजी का स्वदेशी दर्शन आत्मनिर्भरता और स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने पर केंद्रित था। वे भारत के गांवों के उत्थान और सशक्तिकरण में विश्वास करते थे। उनका मानना था कि मशीनें, हालांकि कुछ कार्यों को आसान बना सकती हैं, लेकिन वे लाखों लोगों को बेरोजगार कर सकती हैं। इसलिए, उन्होंने ऐसी मशीनों का समर्थन किया जो शोषण का कारण न बनें और जिन्हें एक व्यक्ति द्वारा संचालित किया जा सके, जैसे सिलाई मशीन। चरखा स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक था, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार पैदा करना और ब्रिटिश मिलों के आयातित कपड़ों पर निर्भरता कम करना था। गांधीजी ने चरखा को केवल एक आर्थिक उपकरण नहीं, बल्कि अहिंसा, आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में देखा। वे मानते थे कि स्वदेशी अपनाने से भारत अपनी सांस्कृतिक पहचान और आर्थिक स्वतंत्रता को पुनः प्राप्त कर सकता है, और पश्चिमी भौतिकवाद के प्रभाव से बच सकता है।

9. गांधीजी महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक सुधारों के बारे में क्या विचार रखते थे?

गांधीजी महिलाओं के सशक्तिकरण के प्रबल समर्थक थे और उनका मानना था कि समाज की प्रगति के लिए पुरुषों और महिलाओं दोनों का समान होना आवश्यक है। उन्होंने पर्दा प्रथा, बाल विवाह, दहेज प्रथा और विधवाओं के प्रति भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों का कड़ा विरोध किया। वे महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार और अवसर दिलाने के पक्षधर थे, और उन्हें पुरुषों की संपत्ति मानने की मानसिकता की निंदा करते थे। उनका मानना था कि महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए आवाज उठानी चाहिए और पुरुषों द्वारा बनाए गए अनुचित कानूनों के खिलाफ विद्रोह करना चाहिए। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और जोर दिया कि महिलाओं को अपनी पसंद के अनुसार जीवन जीने का अधिकार होना चाहिए। गांधीजी का यह भी मानना था कि अहिंसा की अंतिम जीत महिलाओं के हाथों में होगी, क्योंकि प्रभु ने उन्हें पुरुषों से अधिक प्रेमपूर्ण हृदय दिया है। वे चाहते थे कि महिलाएं आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनें, जिससे न केवल उनकी स्थिति में सुधार होगा, बल्कि पूरे समाज की प्रगति होगी।

10. गांधीजी 'ईश्वर' और 'धर्म' को कैसे समझते थे, और उनके आध्यात्मिक विचार उनकी नैतिकता को कैसे प्रभावित करते थे?

गांधीजी के लिए, ईश्वर केवल एक व्यक्तिगत सत्ता नहीं, बल्कि सत्य, प्रेम और नियम का मूर्त रूप था। वे मानते थे कि ईश्वर हर प्राणी, हर परमाणु में व्याप्त है। उनका दृढ़ विश्वास था कि ईश्वर की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता, और हर सांस जो वे लेते थे, वह ईश्वर की दया पर निर्भर करती थी। वे सभी धर्मों को सच्चा मानते थे, लेकिन उनमें कुछ कमियां भी स्वीकार करते थे। उनका मानना था कि धर्म का सच्चा ज्ञान धर्मों के बीच की दीवारों को तोड़ता है, और सभी को अपने धर्म का पालन करते हुए दूसरे धर्मों का सम्मान करना चाहिए। उनका आध्यात्मिक दृष्टिकोण उनकी नैतिकता का आधार था, जो उन्हें सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और निस्वार्थ सेवा जैसे एकादश व्रतों का पालन करने के लिए प्रेरित करता था। वे मानते थे कि ईश्वर की प्राप्ति केवल गहन साधना से ही संभव है, और जीवन सेवा के लिए है, भोग के लिए नहीं। उनका लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार था, जिसे वे सभी मनुष्यों के लिए संभव मानते थे।

11. गांधीजी शिक्षा को किस रूप में देखते थे और शिक्षा प्रणाली के बारे में उनके क्या विचार थे?

गांधीजी शिक्षा को केवल अक्षर ज्ञान तक सीमित नहीं मानते थे, बल्कि इसे चरित्र निर्माण, आत्मनिर्भरता और नैतिक विकास का साधन मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा बच्चों को अच्छे-बुरे का भेद करना और अच्छे को अपनाना तथा बुरे को त्यागना सिखाना चाहिए। वे बुनियादी शिक्षा पर जोर देते थे, जिसमें हस्तकला को शिक्षा का अभिन्न अंग माना जाता था। चरखा को वे शिक्षा का एक महत्वपूर्ण साधन मानते थे, जिसके माध्यम से विद्यार्थी गणित, इतिहास, भूगोल और अर्थशास्त्र जैसे विषयों को सीख सकते थे। उन्होंने शिक्षा को मातृभाषा के माध्यम से प्रदान करने का समर्थन किया, क्योंकि उनका मानना था कि विदेशी भाषा में शिक्षा बच्चों को उनकी जड़ों से दूर कर देती है और उनके विचारों के स्वतंत्र विकास में बाधा डालती है। उनका उद्देश्य एक ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करना था जो छात्रों को व्यस्त मधुमक्खी की तरह परिश्रमी बनाए, न कि मशीनों की तरह यांत्रिक।

12. गांधीजी ने मशीनीकरण और आधुनिक औद्योगिक सभ्यता के बारे में क्या कहा?

गांधीजी मशीनीकरण और आधुनिक औद्योगिक सभ्यता के आलोचक थे, लेकिन वे मशीनों के पूर्ण बहिष्कार के पक्ष में नहीं थे। उनका मुख्य सरोकार था कि मशीनें हजारों श्रमिकों को बेरोजगार कर देंगी और मानव श्रम का स्थान ले लेंगी। वे ऐसे मशीनों का समर्थन करते थे जो गांव के करोड़ों लोगों का बोझ कम करें, जिन्हें एक व्यक्ति द्वारा चलाया जा सके, और जो शोषण का कारण न बनें। उन्होंने सिंगर सिलाई मशीन की प्रशंसा की क्योंकि यह व्यक्तिगत उपयोग के लिए थी और लोगों को विमुख नहीं करती थी। हालांकि, वे यह भी स्वीकार करते थे कि आधुनिक औद्योगिक सभ्यता के कड़वे या मीठे फलों को पूरी तरह से वर्जित नहीं किया जा सकता। उनका विचार था कि हमें मशीनों के गुलाम नहीं बनना चाहिए, बल्कि उनका उपयोग मानव कल्याण के लिए विवेकपूर्ण ढंग से करना चाहिए। उनका जोर "जन-समूह द्वारा उत्पादन" पर था, न कि "बहु-उत्पादन" पर, ताकि बेरोजगारी की समस्या का समाधान हो सके और धन का समान वितरण सुनिश्चित हो।

13. गांधीजी ने भारत की गरीबी और वर्ग असमानता को कैसे संबोधित किया?

गांधीजी भारत की गरीबी और वर्ग असमानता से बहुत चिंतित थे। उनका मानना था कि सच्चा समाजवाद तभी स्थापित हो सकता है जब समाज में ऊंच-नीच का कोई भेद न हो और धन का समान वितरण हो। वे पूंजीपतियों से अपनी संपत्ति को गरीबों के न्यासी के रूप में देखने का आग्रह करते थे, और अतिरिक्त आय को समाज के कल्याण के लिए उपयोग करने की सलाह देते थे। उनका प्रसिद्ध कथन था, "पृथ्वी पर सभी की आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त है, लेकिन किसी के लालच के लिए नहीं।" वे मानते थे कि जब तक मुट्ठी भर धनवान और करोड़ों भूखे रहने वालों के बीच जमीन-आसमान का अंतर रहेगा, तब तक अहिंसा पर आधारित राज्य-व्यवस्था कायम नहीं हो सकती। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजित करने और लोगों को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया, ताकि वे अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकें। वे मानते थे कि शिक्षा, चरखा और स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करके गरीबी और बेरोजगारी को दूर किया जा सकता है। उनका लक्ष्य एक ऐसा भारत था जहाँ सबसे गरीब व्यक्ति भी महसूस करे कि यह उसका देश है और उसके निर्माण में उसकी आवाज का महत्व है।


गांधीजी के सिद्धांतों और जीवन पर एक विस्तृत अध्ययन मार्गदर्शिका

अध्ययन मार्गदर्शिका

1. अनासक्तियोग (गीता पर आधारित)

  1. परिचय: यह अंश महात्मा गांधी द्वारा 'अनासक्तियोग' के संपादन को समर्पित है, जो पूज्य बापूजी के साथ उनकी चर्चाओं पर आधारित है। यह संपूर्ण गीता को 56 अधिकरणों में विभाजित करता है, ताकि मूल अठारह अध्यायों में हस्तक्षेप किए बिना विषय का सुविधाजनक विवेचन हो सके।

  2. फलत्याग की अवधारणा:

  3. फलत्याग का अर्थ परिणाम की इच्छा के बिना कर्म में तन्मय रहना है।

  4. इसका अर्थ कर्म का फल न मिलना नहीं, बल्कि फल के प्रति आसक्ति का अभाव है। गीता के अनुसार, फल का त्याग करने वाले को हज़ार गुना फल मिलता है, जो मनुष्य की अखंड श्रद्धा की परीक्षा है।

  5. कर्तव्य परायणता: मनुष्य को अपने कर्तव्य को निश्चित करके निश्चिंत रहना चाहिए और कर्तव्य परायण बनना चाहिए। ऐसी परायणता से मोक्ष सिद्ध किया जा सकता है।

  6. बुद्धि और वासना: जब बुद्धि एक न रहकर अनेक (बुद्धियाँ) हो जाती हैं, तब वह बुद्धि नहीं रहती, वह वासना का रूप ले लेती है। इसलिए बुद्धियों का अर्थ वासनाएँ हैं।

  7. कर्मयोग: वह मनुष्य श्रेष्ठ है जो मन से इंद्रियों को नियमन में रखता है तथा संग-रहित होकर कर्म करने वाली इंद्रियों द्वारा कर्मयोग का आरंभ करता है। इसमें बाहर और भीतर का मेल साधा गया है।

  8. ज्ञान प्राप्ति की शर्तें: ज्ञान प्राप्त करने की तीन शर्तें हैं: प्रणिपात (नम्रता, विवेक), परिप्रश्न (बार-बार पूछना) और सेवा। शोध और जाँच-पड़ताल के बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है।

  9. प्रकाश और अंधकार का मार्ग: जगत में प्रकाश का और अंधकार का, अर्थात ज्ञान का और अज्ञान का मार्ग - ये दो अत्यंत प्राचीन काल से चलते आए सदियों के मार्ग माने गए हैं। इनमें से एक मार्ग से (ज्ञान के मार्ग से) मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करता है; और दूसरे मार्ग से (अज्ञान के मार्ग से) वह बार-बार संसार के चक्र में लौट आता है।

  10. ईश्वर का स्वरूप: ईश्वर अव्यक्त, अविनाशी, सत्य और असत्य का प्रतीक है। वह ही धूप देता है, वर्षा को रोकता या बरसने देता है, अमरता और मृत्यु भी वही है। वह प्राणियों का पालन करने वाला, नाश करने वाला और पुनः उत्पन्न करने वाला है। वह ज्योतियों की भी ज्योति है, अंधकार से परे है, जानने योग्य है और ज्ञान से प्राप्त किया जाता है।

  11. गुण और मोक्ष:

  12. सत्त्वगुण की वृद्धि होने पर मृत्यु को प्राप्त होने वाला उत्तम ज्ञानियों के निर्मल लोकों को प्राप्त करता है।

  13. रजोगुण की वृद्धि होने पर मृत्यु हो तो देहधारी कर्म-संगियों के (मनुष्य-लोक में) जन्म लेता है।

  14. तमोगुण की वृद्धि होने पर मृत्यु पाने वाला देहधारी मूढ़योनि में जन्म लेता है।

  15. त्रिगुणों से परे (गुणातीत): जो मनुष्य गुणों के परिणामों (प्रकाश, प्रवृत्ति, मोह) से अप्रभावित रहता है, वह गुणातीत कहलाता है।

  16. पुरुषोत्तम-योग: यह अध्याय क्षर और अक्षर से परे रहने वाले भगवान के उत्तम स्वरूप को समझाता है। संसार को अविनाशी अश्वत्थ वृक्ष कहा जाता है, जिसका मूल ऊपर और शाखाएँ नीचे हैं।

  17. आसुरी स्वभाव: आसुरी स्वभाव वाले लोग दुष्कर्म करते हैं, काम, क्रोध और लोभ के अधीन होते हैं, और भोग व ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए अन्याय से धन संचय करते हैं।

  18. ज्ञान का महत्व: जो मनुष्य यह परम गुह्य ज्ञान भगवान के भक्तों को देगा, वह उनकी परम भक्ति करने के कारण निश्चित रूप से उन्हें ही प्राप्त करेगा। इस ज्ञान का अनुभव करने वाला ही इसे दूसरों को दे सकता है।

2. आरोग्य की कुंजी

  1. भोजन: भोजन को औषधि के रूप में लेना चाहिए, स्वाद के लिए नहीं। स्वाद मात्र रस में होता है और रस भूख में होता है। मिर्च, हल्दी और मसालों का अत्यधिक उपयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।

  2. चाय, कॉफी, कोको: शरीर को इनकी आवश्यकता नहीं है। ये पदार्थ चीन में पानी की स्वच्छता की कमी के कारण गर्म करके पीने के रूप में प्रचलित हुए, न कि स्वास्थ्य कारणों से।

  3. गुड़: गुड़ शक्कर या चीनी से अधिक गुणकारी है क्योंकि इसमें क्षार होते हैं जो शक्कर और चीनी में नहीं होते।

  4. अफीम: अफीम का सेवन दीन और परलोक में बैठे व्यक्ति जैसा बना देता है, व्यक्ति पाप करने को तैयार हो जाता है।

  5. ब्रह्मचर्य: ब्रह्मचर्य का पालन इच्छाओं पर नियंत्रण और आत्म-अनुशासन से जुड़ा है। कृत्रिम उपायों से संतानोत्पत्ति रोकना प्राचीन प्रथा है, लेकिन आधुनिक युग में इसे 'परोपकारी' जामा पहनाया गया है।

  6. मिट्टी का उपयोग: मिट्टी का लेप या पट्टी का उपयोग सूजन, मोच, दाद और अन्य त्वचा संबंधी समस्याओं के लिए किया जाता है। पीली मिट्टी गुणकारी होती है। मिट्टी खाने के लिए नहीं, बल्कि पेट से कचरा (refuse) निकालने के लिए उपयोग की जाती है।

  7. चद्दर स्नान (वेट शीट बाथ): बुखार या अनिद्रा में उपयोगी, यह शरीर को गर्म करने और पसीना लाने में मदद करता है। यह घमौरियों, पित्ती, खुजली, खसरा और चेचक में भी लाभदायक है।

  8. गर्म पानी का उपयोग: आयोडीन की तरह गर्म पानी भी कीटाणुनाशक होता है और गरीबों के लिए सुलभ उपचार है।

  9. आकाश का महत्व: मनुष्य को आकाश के नीचे सोना चाहिए ताकि उसे शुद्ध वायु और प्राकृतिक दृश्य मिलें। आकाश अनंत और सर्वव्यापक है, और यह आरोग्य के लिए आवश्यक है।

3. आश्रम-भजनावली

  1. ईश्वर से क्षमा प्रार्थना: भक्त वाणी, शरीर, कर्म या मन से किए गए सभी अपराधों के लिए करुणा-सागर महादेव से क्षमा याचना करता है।

  2. वैष्णव जन तो: यह भजन दूसरों के दुख को हरने, परोपकार करने और अहंकार को त्यागने के महत्व पर बल देता है।

  3. विषयों का चिंतन और क्रोध: विषयों का चिंतन आसक्ति पैदा करता है, आसक्ति से कामना, कामना से क्रोध, और क्रोध से मूढ़ता व बुद्धि का नाश होता है।

  4. श्रेय और प्रेय: श्रेय (आत्मा का कल्याण) और प्रेय (लौकिक सुख) में से धीमान पुरुष श्रेय को पसंद करते हैं, जबकि मूर्ख प्रेय को अपनाते हैं।

  5. ॐ का महत्व: वेद ॐ को उस परम पद के रूप में प्रतिपादित करते हैं जिसकी चाह से ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है।

  6. ज्ञान प्राप्ति: उठो, जागो और श्रेष्ठ पुरुषों से ज्ञान प्राप्त करो, क्योंकि ज्ञान का मार्ग छुरे की तीखी धार पर चलने जैसा कठिन है।

  7. बल का महत्व: ज्ञान से भी बढ़कर बल है। बलवान व्यक्ति ही कार्यशील, परिचारक, उपसदन (पास बैठने वाला), श्रोता, मन्ता, बोद्धा, कर्ता और विज्ञाता होता है।

  8. राम और वैदेही: तुलसीदास का भजन "जाके प्रिय न राम वैदेही" उन लोगों को त्यागने की बात करता है जिन्हें राम और सीता प्रिय नहीं हैं, भले ही वे कितने भी स्नेही क्यों न हों।

  9. जन्म-मरण का चक्र: "मन पछितैहै अवसर बीते" भजन मानव जीवन की क्षणभंगुरता और ईश्वर-भक्ति के महत्व पर जोर देता है।

  10. रामनाम का प्रभाव: "सुने री मैंने निर्बल के बल राम" भजन बताता है कि राम का नाम निर्बलों का बल है और संकट में सहायता करता है।

  11. मधुर वाणी और मन की पवित्रता: "अब तो प्रगट भई जग जानी" भजन मोहन (कृष्ण) के प्रति प्रेम को प्रकट करता है और मन की पवित्रता पर बल देता है।

  12. सहज समाधि: कबीर का भजन "साधो सहज समाध भली" बताता है कि सहज समाधि गुरु की कृपा से प्राप्त होती है, जहाँ सभी कर्म सेवा बन जाते हैं और ईश्वर का निरंतर स्मरण होता है।

  13. प्रह्लाद की कथा: यह भजन प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति और हिरण्यकश्यप पर भगवान नरसिंह के विजय की कथा के माध्यम से ईश्वर की सर्वव्यापकता और भक्तों की रक्षा का संदेश देता है।

  14. ईश्वर का एकत्व: "राम कहो, रहमान कहो कोऊ" भजन विभिन्न धर्मों में ईश्वर के एकत्व को दर्शाता है, कि नाम अनेक हो सकते हैं लेकिन स्वरूप एक ही है।

  15. आत्म-समर्पण: "Take my life, and let it be" और "Nearer, my God, to Thee" जैसे अंग्रेजी भजन ईश्वर के प्रति पूर्ण आत्म-समर्पण और निकटता की इच्छा व्यक्त करते हैं।

4. गांधी का नेतृत्व

  1. गांधी का नैतिक व्यक्तित्व: गोखले के अनुसार, गांधी का व्यक्तित्व हड्डी-मांस से निर्मित न होकर नैतिकता के अवयवों से निर्मित था, जो उनके आस-पास के लोगों को भी साहसी और बलिदानी बनाता था।

  2. अहिंसा: अहिंसा का अर्थ प्रेम, दया और क्षमा है। यह तलवार की धार पर चलने से अधिक कठिन है और इसके पालन के लिए घोर तपस्या (त्याग और ज्ञान) की आवश्यकता है। यह कायरता नहीं, बल्कि उच्चतम वीरता है।

  3. सत्य और अहिंसा का संबंध: अहिंसा के बिना सत्य की शोध असंभव है। सत्य और अहिंसा एक सिक्के के दो पहलू हैं, जहाँ अहिंसा साधन है और सत्य साध्य।

  4. नेतृत्व का परिवर्तन: दक्षिण अफ्रीका में चार्ल्ज़ ऑलिवेंट द्वारा कार्यालय से निकाले जाने की घटना गांधी के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जिसने उन्हें ईमानदारी और भ्रष्टाचार विरोधी सार्वजनिक नीति को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित किया।

  5. चंपारण सत्याग्रह: गांधी ने चंपारण के किसानों के लिए मध्यस्थता की और जमींदारों से अन्यायपूर्ण तरीके से लिए गए धन का 25% वापस लेने पर समझौता किया।

  6. महिला सशक्तिकरण: गांधी ने महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया। स्वयं-नियोजित महिला संघ (SEWA) जैसे संगठन उनके विचारों से प्रेरित हैं।

  7. आर्थिक सिद्धांत: गांधी "जन-समूह द्वारा उत्पादन, न कि बहु-उत्पादन" और "बेरोजगारी का इलाज रोजगार प्रदान करना है, न कि खैरात बांटना" के समर्थक थे। वे स्वदेशी और ग्राम-आधारित अर्थव्यवस्था पर बल देते थे।

  8. पूंजी-श्रम संबंधों का सामंजस्य: गांधी ने मजदूरों के प्रति गहरी दिलचस्पी दिखाई और पूंजीपतियों को उनके मुनाफे में मजदूरों को हिस्सा देने का आग्रह किया, ट्रस्टीशिप के सिद्धांत को बढ़ावा दिया।

  9. अंतर्राष्ट्रीय संबंध: गांधी और नेहरू दोनों ने गुटनिरपेक्षता की वकालत की। भारत का ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में शामिल होने का निर्णय गांधी की दूरदृष्टि को दर्शाता है, जहाँ वे बराबरी की साझेदारी चाहते थे।

  10. वैश्विक प्रभाव: मार्टिन लूथर किंग जूनियर, लेच वालेसा और डेसमंड टूटू जैसे नेताओं ने गांधी के अहिंसक सिद्धांतों को अपनाया। जोन गाल्टुंग और जीन शार्प ने अहिंसक प्रतिरोध के वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किए।

  11. शिक्षा पर विचार: गांधी का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य आत्म-दर्शन होना चाहिए और यह विद्यार्थियों को शारीरिक श्रम, वैज्ञानिक ज्ञान और सौंदर्यपरक रसास्वादन से जोड़ना चाहिए।

  12. ट्रस्टीशिप: गांधी ने पूंजीपतियों से अपनी संपत्ति को समाज के ट्रस्टी के रूप में रखने का आग्रह किया। जे.आर.डी. टाटा जैसे कुछ उद्योगपतियों ने इस सिद्धांत को आंशिक रूप से अपनाया।

  13. नेतृत्व के गुण: गांधी को 'पाँचवें स्तर के नायक' के रूप में देखा जाता है - सबसे शालीन, दृढ़ निश्चयी, विनम्र और साहसी, जिसका प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्र की स्थिरता होता है।

5. गांधी की कहानी

  1. समय-पालन: गांधी को समय पर पहुंचने की आदत थी और वे देरी से नफरत करते थे।

  2. जनाज़ा जुलूस: गांधी के अंतिम संस्कार में लाखों लोग शामिल हुए, जो उनके प्रति जनता के असीम प्रेम और सम्मान को दर्शाता है।

  3. श्रीमद्भगवद्गीता का प्रभाव: गांधी ने गीता को अपने जीवन का मार्गदर्शक बताया, जो उन्हें निराशा के क्षणों में भी शांति और मुस्कान देती थी।

  4. 'अनटू दिस लास्ट' का प्रभाव: जॉन रस्किन की इस पुस्तक ने गांधी के जीवन की धारा बदल दी, जिससे वे शारीरिक श्रम और सादे जीवन के आदर्शों को अपनाने के लिए प्रेरित हुए।

  5. हथकरघा और स्वदेशी: गांधी ने हथकरघा को आत्मनिर्भरता और आत्मज्ञान का साधन माना। वे बड़ी मशीनों के विरोधी थे जो बेरोजगारी बढ़ाती थीं।

  6. दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष: डरबन में पगड़ी उतारने से इनकार और चार्ल्स ऑलिवेंट द्वारा कार्यालय से निकाले जाने की घटनाएँ उनके प्रारंभिक संघर्षों को दर्शाती हैं।

  7. असहयोग आंदोलन: गांधी ने स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का उपदेश दिया।

  8. जेल और आंदोलन: गांधी को कई बार जेल जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों का पालन करते हुए अहिंसक प्रतिरोध जारी रखा।

  9. अंतर्राष्ट्रीय ख्याति: रोम्यां रोलां जैसे फ्रांसीसी लेखकों ने गांधी पर पुस्तकें लिखीं, लेकिन गांधी ने अपनी अहिंसक शक्ति के प्रदर्शन में कमी महसूस करते हुए विदेश यात्रा के निमंत्रण अस्वीकार किए।

  10. पूना समझौता: यरवडा जेल में गांधी का उपवास दलित वर्गों के लिए सांप्रदायिक पुरस्कार के खिलाफ था, जिसे अंबेडकर के साथ समझौते के बाद तोड़ा गया।

  11. धार्मिक सहिष्णुता: गांधी स्वयं को ईसाई, हिंदू, मुस्लिम और यहूदी मानते थे। वे सभी धर्मों के प्रभावों का स्वागत करते थे, लेकिन हिंदू रीति-रिवाजों और विश्वासों को छोड़ना पसंद नहीं करते थे।

  12. देश विभाजन: गांधी भारत के विभाजन के विरोधी थे, लेकिन माउंटबेटन की योजना के तहत इसे स्वीकार करना पड़ा।

  13. उपवास और सांप्रदायिक सद्भाव: कलकत्ता में सांप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए गांधी ने आमरण उपवास किया, जिससे शांति और सद्भाव बहाल हुआ।

  14. आत्मनिर्भरता और सरलता: गांधी ने गरीब देशवासियों के प्रतिनिधि के रूप में लंदन में गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया, साधारण कपड़े पहने और बहुमूल्य उपहारों को हरिजन कोष में दान कर दिया।

  15. दान: गांधी ने अमीरों से गरीबों की मदद के लिए दान माँगा, धमकी से नहीं, बल्कि प्रेम और नैतिक दबाव से।

  16. आंतरिक शक्ति: गांधी ने कहा कि वे अपना हृदय चीर कर दिखा सकते हैं कि उसमें राम के प्रति प्रेम भरा है, जो करोड़ों दीन-दुखियों के रूप में उन्हें दिखते हैं।

  17. स्वच्छता: गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों को स्वच्छता अपनाने के लिए प्रेरित किया और स्वयं भी अपने शौचालयों की सफाई करते थे, जातिगत भेदभाव का विरोध करते थे।

  18. शिक्षा और चरखा: गांधी ने चरखे को जनसेवा का साधन और शिक्षा का केंद्र बिंदु बताया, जिसके माध्यम से इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र और गणित जैसे विषय सिखाए जा सकते हैं।

  19. "हिंद स्वराज": यह पुस्तक गांधी ने समुद्र यात्रा के दौरान लिखी थी, जिसमें आधुनिक सभ्यता की कटु आलोचना की गई थी और अहिंसक संघर्ष के महत्व पर बल दिया गया था।

  20. साँपों का अध्ययन: गांधी को साँपों के अध्ययन में भी रुचि थी और वे साँपों को पकड़ने तथा उनके काटने का इलाज सीखने को उत्सुक थे।

6. गांधी की नैतिकता

  1. गांधी का नैतिक स्वरूप: गांधीजी का शरीर नैतिकता के अवयवों से निर्मित था, जो उनके आस-पास के लोगों को भी नैतिक शक्ति प्रदान करता था।

  2. अहिंसा का सार: अहिंसा प्रेम, दया और क्षमा है, तलवार की धार पर चलने से अधिक कठिन। यह आत्म-त्याग और ज्ञान की मांग करती है।

  3. सत्य और अहिंसा: सत्य एकमात्र लक्ष्य है, और इसकी प्राप्ति अहिंसा के बिना असंभव है। अहिंसा साधन है, सत्य साध्य।

  4. परोपकार: हर समय और प्रत्येक मनुष्य के प्रति परोपकारी दृष्टि रखने से अच्छा परिणाम निकलता है। दयालुता का बदला अपने आप मिल जाता है।

  5. आलोचना और प्रशंसा: आलोचना आत्म-ज्ञान और बल प्रदान करती है, जबकि प्रशंसा से विकार उत्पन्न हो सकते हैं।

  6. अप्रत्यक्षित घटनाएँ: ईश्वर के शब्दकोश में अप्रत्यक्षित नाम की कोई चीज़ नहीं है; सभी घटनाएँ कारण-कार्य श्रंखला का हिस्सा हैं।

  7. श्रद्धा: श्रद्धा हिमालय के समान अटल है, जो तूफानों से नहीं हिलती। यह ईश्वर पर पूर्ण विश्वास का प्रतीक है।

  8. अस्पृश्यता: अस्पृश्यता हिंदू धर्म पर एक कलंक है और इसे दूर करना प्रत्येक हिंदू का परम कर्तव्य है।

  9. पाखंड का विरोध: गांधी ने पाखंड और अंधविश्वास का विरोध किया, सत्य और ईमानदारी पर बल दिया।

  10. क्रोध: क्रोध मूर्खता है, और एक सेवक या अहिंसक व्यक्ति को क्रोध त्याग देना चाहिए।

  11. स्वाद पर विजय: स्वाद पर विजय ब्रह्मचर्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भोजन भूख मिटाने के लिए करना चाहिए, स्वाद के लिए नहीं।

  12. ब्रह्मचर्य: ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल जननेंद्रिय पर नियंत्रण नहीं, बल्कि सभी इंद्रियों पर नियंत्रण है। कामुक बातें सुनना या देखना भी ब्रह्मचर्य का उल्लंघन है।

  13. नैतिक कार्य: नैतिक कार्य स्वेच्छा से होने चाहिए, प्रशंसा पाने के लिए नहीं। धन संग्रह सर्वोच्च नैतिकता का विरोधी है।

  14. गलतियों से सीखना: गलतियों को माफ किया जाना चाहिए, लेकिन उन्हें दोहराया नहीं जाना चाहिए। हमें अतीत को भूलकर वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

  15. धर्म और ज्ञान: सभी धर्म सच्चे और समान हैं क्योंकि नैतिकता से अलग कोई धर्म नहीं हो सकता। सच्चा ज्ञान आत्मा की उन्नति के लिए है।

  16. स्वयं का अवतार: गांधी स्वयं को अवतारी पुरुष नहीं मानते थे, बल्कि उनका मानना था कि कोई भी व्यक्ति लग्न से प्रयास करे तो उनके जैसा बन सकता है।

  17. शिक्षा का उद्देश्य: शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण और आत्म-दर्शन होना चाहिए, ताकि व्यक्ति स्वयं को और ईश्वर को पहचान सके।

7. गांधीं व्यंग्य चित्र

  1. असहयोग आंदोलन: गांधी के असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन को कार्टूनों में सशक्त रूप से दर्शाया गया है, जिसमें ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध पर जोर दिया गया है।

  2. गांधी-इरविन समझौता: नमक सत्याग्रह के बाद हुआ यह समझौता, विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार आंदोलन को समाप्त करने का संकेत था।

  3. सत्य और अहिंसा: कार्टूनों में गांधी को ब्रिटिश शक्ति के खिलाफ सत्य और अहिंसा के हथियार के साथ लड़ते हुए दिखाया गया है, जो विश्व के लिए एक आदर्श था।

  4. स्वदेशी: गांधी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी उत्पादों के उपयोग का आह्वान किया, जिसने ब्रिटिश कपड़ा उद्योग को भारी नुकसान पहुँचाया।

  5. साम्प्रदायिक एकता: गांधी ने हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया और विभाजन के खिलाफ थे। ून-तस्वीरों में गांधी को सांप्रदायिक विभाजन को रोकने के लिए प्रयास करते हुए दिखाया गया है।

  6. राजनीतिक वार्ता: गांधी विभिन्न राजनीतिक वार्ताओं में शामिल रहे, लेकिन विभाजन और सत्ता हस्तांतरण के मुद्दों पर उनकी अपनी दृढ़ मान्यताएँ थीं।

  7. मृत्यु: गांधी की हत्या के बाद भी, उनकी रोशनी और सिद्धांत भारत और दुनिया को प्रेरित करते रहे।

8. ग्राम स्वराज्य

  1. अर्थ-व्यवस्था का विकेंद्रीकरण: गांधीजी का मानना था कि देश के हर नागरिक को पूरा काम देने के लिए उद्योगवाद और अनावश्यक यंत्रों का त्याग करना होगा। शहर गाँवों के शोषण का साधन हैं, और भविष्य की आशा गाँवों पर आधारित है।

  2. अहिंसक राज्य-व्यवस्था: अहिंसा पर आधारित राज्य-व्यवस्था तभी कायम रह सकती है जब समाज में धनवानों और गरीबों के बीच जमीन-आसमान का अंतर समाप्त हो।

  3. शारीरिक श्रम: 'मेहनत नहीं तो खाना नहीं' का सिद्धांत, यह दान नहीं, बल्कि काम और भोजन के बदले में श्रम का आदान-प्रदान है।

  4. ट्रस्टीशिप: गांधी का ट्रस्टीशिप का सिद्धांत यह मानता है कि धनवानों को अपनी संपत्ति का उपयोग किसानों और गरीबों की भलाई के लिए करना चाहिए। यह हिंसा के बजाय प्रेम और सहयोग पर आधारित है।

  5. सामुदायिक जीवन: गाँवों की सफाई, परिवार की सेवा और सामुदायिक पशु-पालन जैसे कार्यों में सहयोग का महत्व है।

  6. बुनियादी तालीम: शिक्षा का उद्देश्य गाँवों के बच्चों को आदर्श निवासी बनाना है, जो अपने हाथों से काम करना सीखें और आत्मनिर्भर बनें। चरखा इस शिक्षा का केंद्रीय बिंदु है।

  7. ग्रामोद्योग: चरखा, तेलघानी (तेल निकालने वाला), हाथ-काग़ज़ जैसे ग्रामोद्योगों को पुनर्जीवित करना आवश्यक है ताकि गाँव आत्मनिर्भर बन सकें और मिलावटी उत्पादों से बच सकें।

  8. बैल यातायात: बैल भारत के गाँवों में यातायात का एक महत्वपूर्ण साधन हैं और हमारी हाथ-उद्योग सभ्यता का हिस्सा हैं।

  9. प्राकृतिक उपचार: कुदरती इलाज जैसे मिट्टी का लेप और पानी के विभिन्न उपयोगों को रोगों के निवारण के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

  10. शराबबंदी: शराब की लत एक बीमारी है जो आत्मा का नाश करती है, इसलिए इसे समाज से खत्म करना आवश्यक है।

  11. ग्राम-सेवक: ग्राम-सेवक वह व्यक्ति है जो निःस्वार्थ भाव से गाँवों की सेवा करता है और गरीबी को स्वेच्छा से स्वीकार करता है।

  12. शांति सेना: शांति सेना अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित है और दंगों को रोकने तथा सद्भाव स्थापित करने का कार्य करती है।

9. त्याग का संदेश

  1. शुद्ध यज्ञ: शुद्ध यज्ञ करने वाला व्यक्ति अपना कुछ भी बाकी नहीं रखता; वह सब-कुछ कृष्णापर्ण कर देता है।

10. दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास

  1. गांधी का अनुभव: दक्षिण अफ्रीका में गांधी ने भारतीयों के साथ होने वाले नस्लीय भेदभाव और अपमान का अनुभव किया।

  2. सत्याग्रह का विकास: सत्याग्रह आंदोलन, जिसमें अहिंसक प्रतिरोध का उपयोग किया गया, ब्रिटिश सरकार के दमनकारी कानूनों के खिलाफ था।

  3. महिलाओं की भूमिका: महिलाओं ने सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और जेल गए, अपनी जान की परवाह किए बिना।

  4. गोखले का प्रभाव: गोपाल कृष्ण गोखले ने गांधी के जीवन में एक गुरु की भूमिका निभाई और उन्हें भारत सेवक समाज में शामिल होने का आग्रह किया।

  5. गिरमिटिया मजदूर: सत्याग्रह ने गिरमिटिया मजदूरों के अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी।

  6. जनरल स्मट्स से वार्ता: गांधी ने जनरल स्मट्स के साथ भारतीयों की शिकायतों को दूर करने के लिए वार्ता की, लेकिन अपमानजनक प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया।

  7. जीत: सत्याग्रह के परिणामस्वरूप दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों को विजय मिली, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के अन्य उपनिवेशों में भारतीयों को भी प्रभावित किया।

11. बहुरूपी गांधी

  1. गांधी का बहुआयामी व्यक्तित्व: गांधी एक किसान, कतैइया (कताई करने वाला), बुनकर, बनिया और एक महान शिक्षक थे, जिन्होंने अपने जीवन से विभिन्न भूमिकाओं का प्रदर्शन किया।

  2. वकील से सत्य के पुजारी तक: डरबन में पगड़ी उतारने से इनकार करने के बाद, उन्होंने वकालत को दो पक्षों के बीच मेल कराने का साधन माना।

  3. आत्मनिर्भरता और स्वदेशी: उन्होंने बड़ी मशीनों का विरोध किया जो बेरोजगारी बढ़ाती थीं और हस्तशिल्प व कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया।

  4. साधारण जीवन: वे सादगी से रहते थे, साधारण कपड़े पहनते थे और कम भोजन करते थे।

  5. पवित्रता और स्वच्छता: उन्होंने स्वच्छता को अत्यधिक महत्व दिया और जातिगत भेदभाव का विरोध किया।

  6. चरखे का महत्व: चरखा उनके लिए सिर्फ एक उपकरण नहीं, बल्कि जनसेवा, शिक्षा और आत्मनिर्भरता का प्रतीक था।

  7. दान और परोपकार: वे अमीरों से दान इकट्ठा करते थे और उसे गरीबों की सेवा में लगाते थे।

  8. लेखन: वे चलते वाहन में भी लिखते थे, उनकी रचनाएँ सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित थीं।

12. बापू और स्त्री

  1. पर्दा-प्रथा का विरोध: गांधी ने पर्दा-प्रथा को महिलाओं की स्वतंत्रता और विकास में बाधा माना।

  2. लैंगिक समानता: उन्होंने पुत्र और पुत्री में समानता पर बल दिया और पुरुषों को भी घरेलू कार्यों में भागीदारी करने के लिए प्रोत्साहित किया।

  3. पति-पत्नी का संबंध: पति और पत्नी को गाड़ी के दो समान पहिए माना, जहाँ दोनों को समान अधिकार और कर्तव्य प्राप्त हैं।

  4. महिला सशक्तिकरण: उन्होंने महिलाओं को आत्मबलिदान और साहस के क्षेत्र में पुरुषों से अधिक सक्षम माना और उन्हें अपनी शक्ति पहचानने के लिए प्रेरित किया।

  5. बहुविवाह का विरोध: पुरुषों का एक से अधिक पत्नी रखना गलत है।

  6. सती प्रथा का विरोध: सती प्रथा को अज्ञान और आत्मा के अमरत्व के विपरीत माना।

  7. यौन नैतिकता: मासिक धर्म के दौरान यौन संबंध को हानिकारक माना और महिलाओं पर हमला करने वाले पुरुषों को कायर बताया।

  8. महिलाओं का विकास: महिलाओं के निर्विघ्न विकास का समर्थन किया, क्योंकि यह देश की प्रगति के लिए आवश्यक है।

13. मंगल प्रभात

  1. सत्य ही परमेश्वर: गांधी के अनुसार, 'सत्य' ही परमेश्वर है और जहाँ सत्य है, वहाँ ज्ञान और आनंद है।

  2. ब्रह्मचर्य: ब्रह्मचर्य का अर्थ सभी इंद्रियों पर नियंत्रण है, न कि केवल जननेंद्रिय पर।

  3. अपरिग्रह: अपरिग्रह का अर्थ अत्यधिक संपत्ति का त्याग है, ताकि गरीबों को उनकी आवश्यकता के अनुसार मिल सके।

  4. स्पृश्यता-अस्पृश्यता: अस्पृश्यता को हिंदू धर्म पर एक पाप और कलंक माना, जिसे मिटाना हर हिंदू का कर्तव्य है।

  5. देह-श्रम: 'रोटी-मज़दूरी' का सिद्धांत, जो कहता है कि जो मेहनत नहीं करता उसे खाने का कोई हक नहीं।

  6. नश्वरता: 'कुछ' का मिट जाना यानी परमात्मा में मिल जाना, जीवन की क्षणभंगुरता को स्वीकार करना।

  7. स्वदेशी: स्वदेशी आत्मा का धर्म है, जिसका अर्थ अपने पास के लोगों की सेवा में लगे रहना है।

  8. व्रत का महत्व: व्रत बल की निशानी है और संकल्प को दृढ़ करता है। 'जहाँ तक हो सकेगा करूँगा' कहना कमजोरी दर्शाता है।

  9. अहिंसा के नियम: अहिंसा का अर्थ सभी जीवों के लिए समभाव रखना और अत्याचारी के प्रति भी प्रेमभाव रखना है, लेकिन उसके अन्याय का विरोध करना।

14. महात्मा का अध्यात्म

  1. गांधी का आध्यात्मिक स्वरूप: गांधी ने अपने आचरण से सभी धर्मों के लोगों को अपना मानने पर विवश कर दिया।

  2. सरलता और त्याग: गांधी सादगी की प्रतिमूर्ति थे और आडंबर से दूर रहते थे। उनका मानना था कि आचरण से बढ़कर कोई प्रचार नहीं हो सकता।

  3. ईश्वर की अनुभूति: ईश्वर को प्रत्यक्ष नहीं देखा जा सकता, लेकिन उसकी दया और उदारता सृष्टि में सर्वत्र दिखाई देती है।

  4. रामनाम: रामनाम ईश्वर का एक नाम है और ईश्वर की उपासना का माध्यम है। यह माया के साथ संघर्ष में शक्ति देता है।

  5. सत्य और अहिंसा: सत्य और अहिंसा सार्वभौमिक सिद्धांत हैं। उपासना मनुष्यकृत साधन है, जो विविधता में एकता लाती है।

  6. आंतरिक चेतना: अंतरात्मा की आवाज सबको सुनाई नहीं देती, यह केवल मननशील, विवेकी, विनम्र, आस्तिक और संयमी व्यक्ति को सुनाई देती है।

  7. मृत्यु: मृत्यु एक स्वागत योग्य मुक्ति का साधन है, और तथाकथित दुर्भाग्य को विपत्ति या दंड नहीं मानना चाहिए।

  8. आत्मशुद्धि: धार्मिकता आत्मशुद्धि और तपस्या से आती है, न कि पाखंड या वाक्-चातुर्य से।

  9. धर्म परिवर्तन: गांधी ने एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति का धर्म परिवर्तन करने को अनुचित माना।

15. मेरे सपन का भारत

  1. सत्याग्रह और अहिंसा: अहिंसक असहयोग के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है, जो अत्याचारियों का हृदय-परिवर्तन भी कर सकती है।

  2. जमींदारी उन्मूलन: जमींदारी का अंत वर्ग-संघर्ष के बिना अहिंसक तरीके से किया जा सकता है, यदि किसान एकजुट होकर काम करें।

  3. मिलों का विरोध: आटा और चावल की मिलें बेरोजगारी लाती हैं और पोषण मूल्य को नष्ट करती हैं। हाथ से पीसना और कूटना बेहतर है।

  4. गरीबी और आत्मविश्वास: गरीबी से मुक्ति आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता से ही संभव है।

  5. स्वराज्य: स्वराज्य केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि सभी के लिए आर्थिक और सामाजिक समानता भी है।

  6. शिक्षा और दहेज: शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण और आत्मनिर्भरता है। दहेज प्रथा को समाप्त करना आवश्यक है।

  7. स्त्री-पुरुष समानता: स्त्री और पुरुष समान हैं, दोनों को समान अधिकार और स्वतंत्रता होनी चाहिए।

  8. चरित्र निर्माण: शिक्षा और अनुशासन का उद्देश्य चरित्र निर्माण होना चाहिए।

  9. ग्राम-सफाई: गाँव और शहरों में स्वच्छता बनाए रखना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

  10. कोढ़ियों की सेवा: कोढ़ियों की सेवा करना परमार्थ का कार्य है।

  11. शराबबंदी: शराब की लत आत्मा का नाश करती है और समाज के लिए हानिकारक है।

16. रामनाम

  1. रामनाम की शक्ति: रामनाम सभी बीमारियों का सबसे बड़ा इलाज है।

  2. सत्य और रामनाम: जो रामनाम पर विश्वास करता है, उसे धन और सम्मान की तलाश नहीं होती।

  3. रामनाम का उपयोग: रामनाम का जप शारीरिक और मानसिक शुद्धि के लिए किया जाता है।

  4. विषाणुनाशक: रामनाम का स्पर्श वीर्य को गतिमान और ऊर्ध्वगामी बनाता है, जिससे पतन असंभव हो जाता है।

  5. परम शक्ति: रामनाम वह शक्ति है जो व्यक्ति को गिरने से बचाती है और उसे ईश्वर का सहारा देती है।

  6. ईश्वर पर विश्वास: जो ईश्वर पर विश्वास करता है, वह हमेशा उसी पर भरोसा रखता है और किसी बाहरी सहायता की अपेक्षा नहीं करता।

17. सेवाग्राम से शोध ग्राम

  1. व्यक्तिगत और सार्वभौमिक: रॉनल्ड्स ने कहा, "जो चीजें हम सबसे व्यक्तिगत मानते हैं, वे सबसे सामान्य होती हैं।"

  2. सेवाग्राम से शोधग्राम: लेखक के बचपन का अनुभव सेवाग्राम आश्रम में बीता, और उन्होंने अपने वर्तमान निवास का नाम 'शोधग्राम' रखा है।

  3. कुटीर अस्पताल: आदिवासियों के लिए कुटीर अस्पताल बनाए गए थे जहाँ मरीज के रिश्तेदार भी उसकी देखभाल कर सकते थे, जो आधुनिक अस्पतालों से अधिक आनंददायक और सुविधाजनक था।

  4. मलेरिया नियंत्रण: मलेरिया नियंत्रण अभियान में सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया गया, जिन्होंने आदिवासियों के साथ भागीदारी पद्धति से काम किया।

  5. स्त्री-रोगों का सर्वेक्षण: एक सर्वेक्षण से पता चला कि ग्रामीण क्षेत्रों में 92% महिलाएं स्त्री-रोगों से पीड़ित थीं, लेकिन उनमें से केवल 8% ने ही इलाज करवाया। यह एक विश्व-प्रसिद्ध अध्ययन बन गया।

  6. नवजात मृत्यु दर: शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के बावजूद, नवजात शिशु मृत्यु दर में कमी नहीं आ रही थी, जिसका मुख्य कारण जन्म के समय कम वजन और कुपोषण था।

संक्षिप्त उत्तर प्रश्न

  1. गांधीजी के अनुसार 'फलत्याग' की अवधारणा क्या है? इसका अर्थ कर्म के फल से संबंधित सामान्य धारणा से किस प्रकार भिन्न है?

गांधीजी के अनुसार, फलत्याग का अर्थ परिणाम की इच्छा के बिना कर्म में तन्मय रहना है। यह सामान्य धारणा से भिन्न है क्योंकि इसका अर्थ यह नहीं है कि त्यागी को कर्म का फल नहीं मिलता, बल्कि फल के प्रति आसक्ति का अभाव है। गांधीजी का मानना था कि फल का त्याग करने वाले को हज़ार गुना फल मिलता है, जो उसकी अखंड श्रद्धा की परीक्षा है।

  1. "अनासक्तियोग" के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने की तीन शर्तें क्या हैं? इनमें से प्रत्येक शर्त का संक्षिप्त विवरण दें।

"अनासक्तियोग" के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने की तीन शर्तें हैं: प्रणिपात, परिप्रश्न और सेवा। प्रणिपात का अर्थ नम्रता और विवेक है; परिप्रश्न का अर्थ बार-बार प्रश्न पूछना है; और सेवा का अर्थ है गुरु की निस्वार्थ सेवा करना। गांधीजी के अनुसार, शोध और जाँच-पड़ताल के बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है।

  1. गांधीजी ने भोजन और स्वास्थ्य के बारे में क्या दृष्टिकोण रखा? विशेष रूप से 'स्वाद' और 'औषधि' के संबंध में उनके विचारों को समझाएं।

गांधीजी ने भोजन को स्वाद के लिए नहीं, बल्कि औषधि के रूप में लेने का दृष्टिकोण रखा। उनका मानना था कि स्वाद मात्र भूख में होता है, और पेट क्या चाहता है, इसका पता बहुत कम लोगों को रहता है क्योंकि उन्हें गलत आदतें पड़ गई हैं। वे मिर्च और मसालों के अत्यधिक उपयोग को अनावश्यक मानते थे।


  1. महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले ने गांधी के व्यक्तित्व का वर्णन कैसे किया? उनके अनुसार गांधी में कौन सी अद्वितीय शक्ति थी?

गोखले के अनुसार, गांधी का शरीर हड्डी-मांस से निर्मित न होकर नैतिकता के अवयवों से निर्मित था। गोखले ने कहा कि गांधी में वह अद्वितीय आत्मिक शक्ति थी जो उनके आस-पास के लोगों को भी साहसी और बलिदानी बना देती थी। उनकी उपस्थिति में लोग न केवल कोई अशोभनीय कार्य करने में शर्म महसूस करते थे, बल्कि मन में भी कोई अशोभनीय बात लाने से डरते थे।


  1. गांधीजी ने "अहिंसा" को किस प्रकार परिभाषित किया? उन्होंने इसे कायरता से कैसे भिन्न बताया?

गांधीजी ने अहिंसा को प्रेम, दया और क्षमा के रूप में परिभाषित किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि अहिंसा कायरता नहीं है, बल्कि सर्वोच्च सद्गुण और उच्चतम वीरता है। उनके लिए, अहिंसक व्यवहार कभी पतनकारी नहीं होता, जबकि कायरता सदैव पतन का कारण बनती है।

  1. जॉन रस्किन की पुस्तक "अनटू दिस लास्ट" का गांधीजी के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा? उन्होंने इस पुस्तक के बारे में अपनी आत्मकथा में क्या लिखा है?

जॉन रस्किन की पुस्तक "अनटू दिस लास्ट" ने गांधीजी के जीवन की धारा बदल दी। गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि इस ग्रंथ में उन्होंने अपने भीतर गहराई से भरी हुई चीज़ का स्पष्ट प्रतिबिंब देखा। इस पुस्तक ने उन्हें शारीरिक श्रम के महत्व और सादे जीवन के आदर्शों को अपनाने के लिए प्रेरित किया।

  1. ग्राम स्वराज्य के संदर्भ में गांधीजी के आर्थिक सिद्धांत क्या थे? उन्होंने शहर और गाँव के संबंधों पर क्या टिप्पणी की?

ग्राम स्वराज्य के संदर्भ में गांधीजी का आर्थिक सिद्धांत था कि देश के हर नागरिक को पूरा काम देने के लिए उद्योगवाद, केंद्रीयकृत उद्योग-धंधों और अनावश्यक यंत्रों का त्याग करना होगा। वे शहरों को गाँवों के शोषण का साधन और समाज-शरीर पर फोड़े मानते थे, उनका मानना था कि भविष्य की उज्ज्वल आशा गाँवों पर आधारित है।


  1. गांधीजी ने पूंजीपति और जमींदारों के प्रति क्या दृष्टिकोण अपनाया? उन्होंने वर्ग-संघर्ष के बजाय किस समाधान की वकालत की?

गांधीजी वर्ग-संघर्ष के विरोधी थे। उनका उद्देश्य पूंजीपतियों और जमींदारों का नाश करना नहीं, बल्कि उनके और आम लोगों के बीच के संबंधों को अधिक स्वस्थ और शुद्ध बनाना था। उन्होंने ट्रस्टीशिप के सिद्धांत की वकालत की, जहाँ धनवान अपनी संपत्ति को किसानों के संरक्षक के रूप में रखते हैं और उसका उपयोग मुख्य रूप से उनकी भलाई के लिए करते हैं।

  1. गांधीजी ने पर्दा-प्रथा को महिलाओं के लिए क्या माना और इसके विरोध में उनके मुख्य तर्क क्या थे?

गांधीजी ने पर्दा-प्रथा को महिलाओं की स्वतंत्रता में एक बड़ी बाधा माना। उनके अनुसार, यह महिलाओं को भेड़-बकरियों की तरह कैद करती है और उन्हें सार्वजनिक जीवन से दूर रखती है। उन्होंने तर्क दिया कि कोई भी बात केवल प्राचीन होने के कारण अच्छी नहीं होती, और पर्दा-प्रथा से होने वाली हानि स्वयं सिद्ध है, जिसे बुद्धि स्वीकार नहीं कर सकती।


  1. गांधीजी के अनुसार 'सत्य' और 'परमेश्वर' का क्या संबंध है? उन्होंने 'रामनाम' की शक्ति और उसके उपयोग के बारे में क्या कहा?

गांधीजी के अनुसार, 'सत्य' ही परमेश्वर है। उनका मानना था कि जहाँ सत्य है, वहाँ ज्ञान और आनंद है। उन्होंने 'रामनाम' को ईश्वर का एक नाम और बीमारियों का सबसे बड़ा इलाज बताया। रामनाम का नियमित जप मानसिक और शारीरिक शुद्धि लाता है और व्यक्ति को माया के साथ संघर्ष में शक्ति प्रदान करता है।

निबंध प्रारूप प्रश्न

1. महात्मा गांधी के 'अहिंसा' के सिद्धांत का विस्तार से विश्लेषण करें, और समझाएं कि यह केवल शारीरिक हिंसा के अभाव से कहीं अधिक कैसे है। उनके जीवन के उदाहरणों के साथ बताएं कि उन्होंने इस सिद्धांत को कैसे व्यवहार में लाया।

महात्मा गांधी का 'अहिंसा' का सिद्धांत केवल शारीरिक हिंसा के अभाव से कहीं अधिक गहरा और व्यापक है। यह सत्य, प्रेम, आंतरिक शुद्धता और आत्म-नियंत्रण पर आधारित एक जीवन पद्धति है, जिसे उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन और सार्वजनिक आंदोलनों दोनों में व्यवहार में लाया।

अहिंसा की व्यापक परिभाषा:

  • सत्य से जुड़ाव: गांधीजी के लिए, सत्य ही ईश्वर है। उन्होंने कहा कि "सत्य ही परमेश्वर है कहना अधिक योग्य है"। अहिंसा सत्य की ही अभिव्यक्ति है। जहाँ सत्य नहीं, वहाँ शुद्ध ज्ञान की संभावना नहीं है।

  • प्रेम और सद्भाव: गांधीजी ने 'प्रेम' शब्द के बजाय 'अहिंसा' को प्राथमिकता दी, क्योंकि 'प्रेम' शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं, और विकार के अर्थ में मानव प्रेम मलिन हो सकता है। उनके अनुसार, अहिंसा 'परम शुद्धता' है, जिसका अर्थ आंतरिक और बाह्य दोनों प्रकार की शुद्धता है। यह दूसरों पर दया करने का भाव नहीं, बल्कि निस्वार्थ सेवा है।

  • आंतरिक नियंत्रण: यह केवल बाहरी आचरण नहीं, बल्कि मन, वाणी और कर्म से विषयवासना से रहित होना है। सच्चा ज्ञान का परिणाम भी आत्म-नियंत्रण है। अहिंसा को पूरी तरह से अपनाने के लिए, व्यक्ति को क्रोध, भय और प्रतिशोध से मुक्त होकर मरने के लिए तैयार रहना चाहिए।

  • निष्काम कर्म: यह कर्म के फल की इच्छा छोड़कर निरंतर कर्तव्य कर्म करने का उपदेश है, जो गीता का मुख्य संदेश भी है। कर्मयोग वह है जिसके द्वारा आत्मा शरीर के बंधन से मुक्त होती है।

अहिंसा के सिद्धांत का व्यवहार में लाना (उनके जीवन के उदाहरण):

गांधीजी ने अपने जीवन के हर पहलू में अहिंसा के सिद्धांत को जिया और परखा:

  • व्यक्तिगत जीवन में प्रयोग:

    • माता के प्रतिज्ञाओं का पालन: उन्होंने अपनी मां को दिए गए वचनों को "मरणांत" तक पालन किया, जिसने उन्हें मांसाहार और अन्य बुराइयों से बचाया।

    • शाकाहार: शुरू में मां के प्रतिज्ञा के कारण शाकाहारी बने, लेकिन बाद में उन्होंने इसे विचारपूर्वक अपनाया और दूसरों को भी शाकाहार अपनाने के लिए प्रेरित किया।

    • तपस्या और सादगी: उन्होंने वकालत की पढ़ाई के दौरान विलासिता का त्याग कर सादगी और मितव्ययिता को अपनाया। उन्होंने "अर्धनग्न फकीर" के अपमानजनक उपनाम को प्रशंसासूचक माना, क्योंकि उनकी आकांक्षा पूर्णतः नग्न बनने की थी, शाब्दिक और लाक्षणिक दोनों अर्थों में।

    • आत्म-शुद्धि और व्रत: उन्होंने स्वीकार किया कि व्रत बंधन नहीं, बल्कि स्वतंत्रता का द्वार हैं, और उन्हें अपने प्रयासों में सफलता न मिलने का कारण अपने मन का दृढ़ न होना था।

    • ब्रह्मचर्य के प्रयोग: गांधीजी ने ब्रह्मचर्य को एक महत्वपूर्ण व्रत माना, जिससे विकार नष्ट हो जाते हैं। उनका मानना था कि पूर्ण ब्रह्मचर्य की स्थापना होने पर सभी विकार समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने अपनी पोती मनु के साथ सोने का प्रयोग भी किया, जिसे कुछ साथियों ने गलत समझा, लेकिन उनका उद्देश्य आंतरिक शुद्धता और ब्रह्मचर्य के आदर्श को समझना और साधना था।

    • श्रम और स्वावलंबन: उन्होंने अपने आश्रम में सफाई सहित सभी कार्य स्वयं करने पर जोर दिया।

  • दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह:

    • अधिकारों के लिए संघर्ष: डरबन में पगड़ी उतारने से इनकार करना उनके आत्मसम्मान की रक्षा का पहला अनुभव था। उन्होंने 'कुली बैरिस्टर' जैसे अपमानजनक संबोधनों को स्वीकार किया।

    • सत्याग्रह का जन्म: 'पैसिव रेजिस्टेंस' (निष्क्रिय प्रतिरोध) नाम को त्याग कर उन्होंने 'सत्याग्रह' शब्द गढ़ा, जिसका अर्थ सत्य या शुभ आग्रह है। यह हिंसा के बिना सत्य के प्रति आग्रह का एक शक्तिशाली तरीका था।

    • अहिंसक विरोध: उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों की दुर्दशा को दूर करने के लिए अहिंसक आंदोलन चलाए।

    • झूलू विद्रोह में सेवा: उन्होंने झूलू विद्रोह में अंग्रेजों के घायल सैनिकों की सेवा की, भले ही वे विद्रोहियों के खिलाफ थे। यह उनकी वफादारी और सेवाभाव का प्रदर्शन था।

  • भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रयोग:

    • चंपारण सत्याग्रह: चंपारण के किसानों के लिए उनका संघर्ष अहिंसा और सत्य का एक बड़ा प्रयोग था।

    • अहमदाबाद मिल हड़ताल: उन्होंने मिल मजदूरों के संघर्ष का नेतृत्व अहिंसक हड़ताल के माध्यम से किया, इसे सत्याग्रह का एक प्रयोग मानते हुए।

    • खेड़ा सत्याग्रह: इस आंदोलन ने गुजरात के किसान समाज में राजनीतिक शिक्षा और जागरूकता लाई।

    • रौलेट बिल का विरोध: वे आतंकवाद के कट्टर विरोधी थे और उन्होंने बम और पिस्तौल के मुकाबले सत्याग्रह को अधिक प्रभावी उपाय बताया।

    • साम्प्रदायिक सद्भाव: उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता पर हमेशा जोर दिया। उन्होंने विभाजन के 'दो राष्ट्रों' के सिद्धांत को 'असत्य' कहा और इसे दृढ़ता से अस्वीकार किया। नोआखाली और बिहार में हुए दंगों के दौरान उन्होंने शांति स्थापित करने के लिए पैदल यात्रा की, उपवास किए, और साम्प्रदायिक पागलपन को शांत करने के लिए "वीरों की अहिंसा" की आवश्यकता पर जोर दिया।

    • अहिंसा के बल पर स्वतंत्रता: उनका विश्वास था कि यदि भारतवासी दृढ़ता से 'नहीं' कहना सीख लें तो विदेशी सेनाएं उस पर आक्रमण करने का साहस नहीं करेंगी। उन्होंने कहा कि अहिंसा सांप्रदायिक संघर्ष का उतनी ही सरलता से सामना कर सकती है जितनी सरलता से उसने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता का युद्ध लड़ा है।

    • सरकार के प्रति रवैया: उन्होंने मंत्रियों से अपेक्षा की कि वे सरकारी गोदामों में अनाज जमा करें ताकि अमीर और गरीब सबको समान रूप से अनाज मिल सके।

गांधीजी का अहिंसा का सिद्धांत केवल हिंसा न करने तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक सक्रिय, प्रेमपूर्ण और आत्म-नियंत्रित जीवन जीने की प्रेरणा देता था, जिसका उद्देश्य अन्याय का सत्य के बल पर प्रतिरोध करना और समाज में सद्भाव स्थापित करना था। उन्होंने अपने जीवन के हर कार्य में इस सिद्धांत को लागू किया और यह सिद्ध किया कि यह व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्तरों पर परिवर्तन लाने में सक्षम है।

2. गांधीजी के "ग्राम स्वराज्य" की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या करें, जिसमें उनके आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक विचारों को शामिल किया जाए। यह अवधारणा आधुनिक भारत के लिए कितनी प्रासंगिक है?

गांधीजी की "ग्राम स्वराज्य" की अवधारणा एक व्यापक और दूरदर्शी दृष्टिकोण है, जो आत्म-निर्भरता, समानता और नैतिक मूल्यों पर आधारित एक आदर्श समाज की कल्पना करता है। यह अवधारणा केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक आत्मनिर्भरता भी शामिल थी।

गांधीजी की "ग्राम स्वराज्य" की अवधारणा:

  1. आर्थिक विचार:

    • आत्मनिर्भरता और स्थानीय उद्योग: गांधीजी का मानना था कि गाँवों को अपनी आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर होना चाहिए। उन्होंने मशीनीकरण और बड़े पैमाने के उद्योगों का विरोध किया, यह तर्क देते हुए कि वे लालच पर आधारित थे और मजदूरों को अत्यधिक काम करने पर मजबूर करते थे। उनका उद्देश्य मशीनों को सहायक बनाना था, न कि बाधक।

    • चरखे का महत्व: चरखा उनके आर्थिक दर्शन का एक महत्वपूर्ण प्रतीक था। उनका विचार था कि यह छोटे से छोटे व्यक्ति को भी आध्यात्मिक विकास करने का समान अवसर प्रदान करता है। वे मानते थे कि व्यक्ति को अपनी रोटी के लिए काम करना चाहिए, और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो वह दूसरों की लूट पर जी रहा है।

    • सादा जीवन: उन्होंने जीवन में सादगी पर जोर दिया और अत्यधिक खर्च और नवीनता (जैसे महंगे वस्त्र, विदेशी सामान) का विरोध किया। उनका मानना था कि सरकारी मंत्रियों को भी सादे और छोटे मकानों में रहना चाहिए, विशेषकर जब देश की करोड़ों जनता कठिनाइयों का सामना कर रही हो।

    • धन का त्याग: गांधीजी का अनुभव था कि गरीबी में ईश्वर-परायणता, सेवाभाव और संकट सहने की शक्ति अधिक देखी जाती है, जबकि हुकूमत का मद अक्सर अमीरी में देखा जाता है। वे स्वयं गरीबी में रहना पसंद करते थे और किसी भी चीज को अपनी जेब में रखने के मोह से दूर रहना चाहते थे।

  2. सामाजिक विचार:

    • जातिविहीन और वर्गविहीन समाज: गांधीजी ने अस्पृश्यता और जाति-भेदभाव को पूरी तरह से मिटाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हरिजनों को अपने भीतर से सभी जाति-भेद मिटा देने चाहिए, और सवर्णों को उन सभी धंधों को अपनाकर जाति को मिटाने का प्रयास करना चाहिए, जिनमें आज "अछूत" लगे हुए हैं। उनका लक्ष्य एक वर्गविहीन और जातिविहीन समाज बनाना था।

    • हिंदू-मुस्लिम एकता: गांधीजी ने हिंदू और मुसलमानों के बीच भाईचारे और एकता को अत्यधिक महत्व दिया। उन्होंने विभाजन और द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को "असत्य" कहा। वे मानते थे कि धर्म परिवर्तन से राष्ट्रीयता नहीं बदलती और धर्मों का उद्देश्य लोगों के दिलों को मिलाना होना चाहिए, न कि उन्हें अलग करना। उन्होंने अपने जीवन में सांप्रदायिक सद्भाव स्थापित करने के लिए अथक प्रयास किए, यहाँ तक कि खतरे वाली जगहों पर भी गए।

    • महिलाओं की भूमिका: गांधीजी ने महिलाओं को सशक्त बनाने पर जोर दिया और कहा कि अहिंसा के पालन में वे पुरुषों से आसानी से आगे बढ़ सकती हैं। उन्होंने महिलाओं से आग्रह किया कि यदि वे संसार के कार्यों में हाथ बंटाना चाहती हैं, तो पुरुषों को प्रसन्न करने के लिए श्रृंगार करने से इनकार करें। उनके अनुसार, भविष्य महिलाओं के हाथ में है।

    • कर्तव्य पर जोर: गांधीजी का मानना था कि यदि हर व्यक्ति अपने अधिकारों पर जोर देने के बजाय अपना कर्तव्य निभाए, तो मानव-जाति में शीघ्र ही शांति स्थापित हो जाएगी।

  3. शैक्षिक विचार:

    • बुनियादी शिक्षा (नई तालीम): गांधीजी ने ऐसी शिक्षा पर जोर दिया जो हस्त-कौशल और शारीरिक श्रम पर आधारित हो, न कि केवल किताबी ज्ञान पर। इस शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को कारीगर बनाना नहीं था, बल्कि हस्त-कौशल के माध्यम से ज्ञान प्रदान करना था।

    • नैतिक और आध्यात्मिक विकास: शिक्षा का उद्देश्य केवल बौद्धिक विकास नहीं, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का विकास भी था। वे चाहते थे कि बच्चों को सामुदायिक जीवन की समस्याओं को अहिंसक और लोकतांत्रिक ढंग से हल करना सिखाया जाए, ताकि वे आत्म-विश्वास और स्वावलंबन के साथ जीवन में प्रवेश कर सकें। उन्होंने शिक्षकों से अपेक्षा की कि वे हर व्यक्ति के संपर्क में आने पर यह पूछें कि वे उसे क्या दे सकते हैं, चाहे वह साफ-सफाई, अज्ञानता दूर करना या मानसिक क्षितिज को व्यापक बनाना हो।

आधुनिक भारत के लिए प्रासंगिकता:

गांधीजी की "ग्राम स्वराज्य" की अवधारणा आधुनिक भारत के लिए अत्यधिक प्रासंगिक बनी हुई है, हालांकि इसके कुछ पहलुओं को लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है:

  • आत्मनिर्भरता और विकेन्द्रीकरण: आत्मनिर्भर भारत और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने की वर्तमान पहल गांधीजी के आत्मनिर्भर ग्राम के विचार के अनुरूप है। स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सशक्तिकरण आज भी महत्वपूर्ण लक्ष्य हैं।

  • पर्यावरण संरक्षण: सादा जीवन और सीमित उपभोग का उनका दर्शन आज के जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय चुनौतियों के संदर्भ में अत्यधिक प्रासंगिक है।

  • सामाजिक समरसता: सांप्रदायिक सद्भाव और जातिगत भेदभाव के उन्मूलन का उनका संदेश आज भी भारत की सामाजिक एकता के लिए महत्वपूर्ण है।

  • नैतिक नेतृत्व: गांधीजी ने अपने जीवन में ईमानदारी, त्याग और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के विरोध का सर्वोच्च उदाहरण प्रस्तुत किया। उनका मानना था कि सत्ता की आशा से नैतिक पतन होता है। यह नैतिक आचरण आज भी सार्वजनिक जीवन में एक चुनौती और एक आवश्यक आदर्श है।

  • बुनियादी शिक्षा: हस्त-कौशल और मूल्य-आधारित शिक्षा का उनका मॉडल आज भी कौशल विकास और समग्र व्यक्तित्व निर्माण के लिए प्रासंगिक हो सकता है।

हालांकि, कुछ आलोचकों ने उनके विचारों की व्यावहारिकता पर सवाल उठाए हैं, जैसे कि अहिंसा का बड़े पैमाने पर हिंसा को रोकने में कितना प्रभाव हो सकता है या मशीनीकरण के बिना तीव्र आर्थिक विकास की संभावना। गांधीजी स्वयं भी कभी-कभी अपनी अहिंसा की प्रभावशीलता पर संदेह व्यक्त करते थे और महसूस करते थे कि लोग उनकी सलाह का वास्तविक अर्थों में पालन नहीं कर रहे हैं। इसके बावजूद, उनके मौलिक सिद्धांत - सत्य, अहिंसा, सादगी, आत्म-निर्भरता, समानता और विकेन्द्रीकरण - भारत को एक स्थायी, न्यायपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण समाज बनाने के लिए एक मजबूत नींव प्रदान करते हैं।


3. गांधीजी के नेतृत्व शैली और दर्शन पर चर्चा करें, जिसमें उनकी सत्यनिष्ठा, नम्रता, और 'पांचवें स्तर के नायक' की विशेषताओं को उजागर किया जाए। उनके नेतृत्व ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को कैसे प्रभावित किया और वैश्विक नेताओं को कैसे प्रेरित किया?

गांधीजी की नेतृत्व शैली और दर्शन उनके सत्यनिष्ठा, नम्रता, और अनासक्ति जैसे मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित थे। उन्होंने अपने जीवन को सत्य की खोज और उसके प्रयोगों के लिए समर्पित किया।

गांधीजी की सत्यनिष्ठा और नम्रता गांधीजी की नेतृत्व शैली उनकी सत्यनिष्ठा और नम्रता से ओतप्रोत थी। उनका मानना था कि मनुष्य को सबसे पहले अपने प्रति सच्चा बनना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति दोष करना ही नहीं चाहता, तो उसके पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं होगा। वे हमेशा अपनी गलतियों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखने और दूसरों की गलतियों को पहाड़ पर से देखने की सलाह देते थे, ताकि हजारों पापों से बचा जा सके। उन्होंने कहा कि विश्वास का दिखावा व्यर्थ से भी बुरा होता है, हृदय में विश्वास हो तभी उसका मूल्य है।

गांधीजी की नम्रता उनके हर कार्य में झलकती थी। उन्हें किसी भी व्यक्ति, यहाँ तक कि एक छोटे बच्चे से भी अच्छी बातें सीखने में कोई शर्म नहीं थी। वे सरकारी धन के खर्च के प्रति भी अत्यंत सचेत थे, यह कहते हुए कि जो पैसा खर्च किया जाता है वह अंग्रेजों का नहीं, बल्कि भारत की गरीब जनता का है। उन्होंने दिखावे और आडंबर को त्याग कर सादगी को अपनाया। उन्होंने अपने साथियों को भी अनावश्यक खर्च से बचने की सलाह दी, जैसे मुंह धोने के लिए गर्म पानी का उपयोग, जब लोगों के पास रोटी पकाने के लिए भी लकड़ी न हो। उनके लिए स्वच्छता और सफाई का काम जीवन में सबसे महत्वपूर्ण था, यहाँ तक कि वे स्वयं अपने पैरों से गंदी हुई धोती को भी धोने में संकोच नहीं करते थे।

'पांचवें स्तर के नायक' की विशेषताएँ हालांकि स्रोतों में 'पांचवें स्तर के नायक' (Fifth-level hero) शब्द का सीधा उल्लेख नहीं है, गांधीजी के गुण और कार्यशैली इस अवधारणा को पूरी तरह से दर्शाते हैं, जो विनम्रता को प्रचंड इच्छाशक्ति और सेवाभाव के साथ जोड़ता है:

  • अभय और आत्म-विश्वास: गांधीजी का मानना था कि निर्भयता आध्यात्मिक जीवन की पहली और सबसे आवश्यक शर्त है। उन्होंने लोगों को निर्भय बनने और अहिंसक शक्ति से उत्पन्न होने वाले आत्म-विश्वास में अपनी सुरक्षा खोजने के लिए प्रोत्साहित किया। उनका कहना था कि यदि सत्य अपनी रग-रग में भरा हो, तो उसकी आवाज को कोई दबा नहीं सकता।

  • उदाहरण बनकर नेतृत्व: वे स्वयं अहिंसा के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण थे। जब उन्होंने गांव की सफाई का काम हाथ में लिया, तो खुद झाड़ू उठाई, यह सिखाते हुए कि गंदगी की सफाई करना कोई "हल्का काम" नहीं है। उनका जीवन ही उनके सिद्धांतों का जीता-जागता प्रमाण था। वे दृढ़तापूर्वक मानते थे कि सच्ची अहिंसात्मक शक्ति किसी भी संगठित शत्रु बल को बेकार कर सकती है।

  • निस्वार्थ सेवा: गांधीजी का जीवन लोकसेवा को समर्पित था। वे मानते थे कि ईश्वर को भजने का अर्थ है जगत् की सेवा करना। उन्होंने हरिजनों के उत्थान के लिए धन-संग्रह किया, जिसमें पैसा नहीं बल्कि अधिक से अधिक लोगों का सक्रिय सहयोग महत्वपूर्ण था। वे मंत्रियों को भी साहबी ठाठ से रहने और सरकारी साधनों का घरेलू उपयोग करने से मना करते थे, क्योंकि यह लोकसेवा के उद्देश्य के विरुद्ध था।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभाव गांधीजी के नेतृत्व ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और उसे एक जन आंदोलन में बदल दिया। उन्होंने अहिंसा को एक शक्तिशाली हथियार के रूप में प्रस्तुत किया, यह विश्वास रखते हुए कि यह देश की आजादी की चाभी और सांप्रदायिक शांति की कुंजी है।

  • साम्प्रदायिक एकता: उन्होंने हिंदू-मुस्लिम भाईचारे और एकता पर विशेष जोर दिया। नोआखाली में हुई हिंसा से वे बहुत दुखी थे, और उन्होंने कहा कि प्रतिशोध न तो शांति का मार्ग है और न मानवता का

  • ग्राम स्वराज और शरीर-श्रम: उन्होंने न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता बल्कि ग्राम स्वराज की भी कल्पना की, जिसमें ग्राम पंचायतें शांति और सहकार से अपनी जिम्मेदारी संभालें। वे शरीर-श्रम और खादी को स्वदेशी धर्म का हिस्सा मानते थे, जो करोड़ों देशवासियों को जीवित रख सकता था।

  • विभाजन पर पीड़ा: भारत का विभाजन उनके लिए अत्यंत पीड़ादायक था। उन्होंने इसे कांग्रेस की स्वीकृति के कारण एक विवशता के रूप में स्वीकार किया, पर वे इस पाप के भागी नहीं बनना चाहते थे।

वैश्विक नेताओं को प्रेरणा गांधीजी के अहिंसक सिद्धांत और नैतिक आचरण ने विश्व भर के नेताओं को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि अहिंसा एक सर्वोच्च शक्ति है।

  • विश्व शांति: उन्होंने विश्व शांति के लिए सत्य और अहिंसा पर आधारित संगठन की वकालत की। वे ब्रिटेन और हिंदुस्तान के बीच उत्तम मित्रतापूर्ण संबंधों की कल्पना करते थे, जहाँ अंग्रेज पूरी ईमानदारी से भारत से हट जाएँ।

  • मानवता और भाईचारा: एशियाई सम्मेलन में, उन्होंने स्पष्ट किया कि वे यूरोपीय या अन्य देशों से लड़ने या बदला लेने के लिए एकत्र नहीं हुए हैं, बल्कि भारत की अहिंसक स्वतंत्रता का उपयोग अन्य देशों को दबाने के बजाय सहयोग में करना चाहते हैं। उनके जीवन को मानवजाति के लिए एक दिव्य ज्योति के समान माना गया। उन्होंने जॉन रस्किन (John Ruskin) और लियो टॉल्स्टॉय (Leo Tolstoy) जैसे पश्चिमी विचारकों से प्रेरणा ली और स्वयं उनके सिद्धांतों को अपने जीवन में लागू किया।

संक्षेप में, गांधीजी की नेतृत्व शैली सत्य, अहिंसा, नम्रता, और निस्वार्थ सेवा के सिद्धांतों का एक अनूठा संगम थी। उन्होंने इन सिद्धांतों को व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में सफलतापूर्वक लागू किया, जिससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक अद्वितीय नैतिक आधार मिला और उन्होंने विश्व भर में नैतिक नेतृत्व का एक स्थायी उदाहरण स्थापित किया।


4. गांधीजी के 'ब्रह्मचर्य' और 'स्वाद पर विजय' के सिद्धांतों का मूल्यांकन करें। ये सिद्धांत व्यक्तिगत और सामाजिक नैतिकता के विकास में कैसे योगदान करते हैं?

गांधीजी के 'ब्रह्मचर्य' और 'स्वाद पर विजय' के सिद्धांत उनके व्यापक नैतिक और आध्यात्मिक दर्शन के अभिन्न अंग थे, जो व्यक्तिगत और सामाजिक नैतिकता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं।

1. ब्रह्मचर्य (आत्म-संयम): गांधीजी के अनुसार, ब्रह्मचर्य केवल प्रजनन अंगों के संयम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मन, वाणी और कर्म से पूर्ण संयम है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति को विचारों पर भी नियंत्रण रखना चाहिए, क्योंकि यदि विचारों पर नियंत्रण न हो तो वाणी और शारीरिक क्रियाओं पर नियंत्रण व्यर्थ हो सकता है।

  • ब्रह्म का साक्षात्कार: ब्रह्मचर्य वह जीवन-पद्धति है जो व्यक्ति को ब्रह्म (ईश्वर) के पास ले जाती है। गांधीजी का मानना था कि ईश्वर ही सत्य है और सत्य ही ईश्वर है। ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला व्यक्ति स्वस्थ और दीर्घजीवी होता है।

  • अहिंसा और सर्वव्यापी प्रेम: गांधीजी के लिए, अहिंसा और ब्रह्मचर्य अविभाज्य हैं। उनका कहना था कि सर्वव्यापी प्रेम (अहिंसा) का पालन पूर्ण ब्रह्मचर्य के बिना असंभव है। यदि कोई पुरुष एक स्त्री को या स्त्री एक पुरुष को अपना प्रेम समर्पित कर देता है, तो उसके पास दूसरों के लिए क्या बचता है? इसका अर्थ है कि "हम तो पहले और दूसरे सब बाद को।" यह सर्वव्यापी प्रेम का पालन नहीं कर सकता, क्योंकि उसके पास एक "अपना" माना हुआ कुटुंब होता है जो सारी सृष्टि को अपना कुटुंब बनाने में बाधा बन सकता है।

  • निर्भयता और आंतरिक शुद्धि: ब्रह्मचर्य आत्म-संयम और निर्भयता को जन्म देता है। जब व्यक्ति धन, परिवार और शरीर से "अपनापन" हटा लेता है, तो भय समाप्त हो जाता है। गांधीजी का दृढ़ मत था कि पूर्ण श्रद्धा को अनुभव का अभाव भी नहीं खटकता। व्यक्ति को अहंकार से मुक्त होकर शून्य बनना पड़ता है ताकि ईश्वर का साक्षात्कार हो सके।

2. स्वाद पर विजय: गांधीजी मानते थे कि व्यक्ति को केवल जीने के लिए खाना चाहिए, खाने के लिए नहीं जीना चाहिए। यह सिद्धांत भोजन और स्वाद पर नियंत्रण से जुड़ा है, जिसे वे जीवन की एक महत्वपूर्ण तपस्या मानते थे।

  • शारीरिक श्रम और यज्ञ: गांधीजी के अनुसार, यज्ञ किए बिना जो खाता है वह चोरी का अन्न खाता है। यहाँ यज्ञ का अर्थ शारीरिक श्रम या रोटी के लिए मेहनत है। बाइबिल के कथन "अपनी रोटी तू अपना पसीना बहाकर कमा और खा" में उनकी गहरी आस्था थी। उनका मानना था कि करोड़पति को भी अपनी भूख पैदा करने और खाने के लिए शारीरिक श्रम करना चाहिए। यह सिद्धांत परोपकार या "सेवा" से भी जुड़ा है।

  • अपरिग्रह और सादगी: स्वाद पर विजय अपरिग्रह (आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना) के सिद्धांत से संबंधित है। गांधीजी का जीवन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण था; वे चाहते थे कि ईश्वर उन्हें हमेशा फकीरी की हालत में रखे और उन्हें किसी भी चीज़ को जेब में रखने का मोह न हो। उन्होंने अपनी धोती खुद धोई, यह बताते हुए कि जीवन में स्वच्छता और सफाई से बड़ा कोई काम नहीं है। उनका आधा-नंगा कच्छ भारत की गरीबी का प्रतीक बन गया था, और इंग्लैंड की सर्दी में भी उन्होंने उसे ही पहनना पसंद किया।

  • स्वास्थ्य और प्राकृतिक चिकित्सा: गांधीजी का विश्वास था कि सभी व्याधियाँ प्रकृति के नियमों का भंग करने के कारण होती हैं, और स्वास्थ्य का मार्ग प्रकृति के नियमों का पालन करना है। इसलिए, कृत्रिम जीवन शैली को छोड़कर, मनुष्य शरीर और मन का स्वास्थ्य पुनः प्राप्त कर सकता है। बीमारी को वे एक अपराध मानते थे और स्वयं को या दूसरों को इसके लिए क्षमा नहीं करते थे। वे प्राकृतिक चिकित्सा में विश्वास रखते थे और दूसरों के लिए अपनी दवाइयों को "शिक्षित मूर्खों" के लिए मानते थे, क्योंकि वे मूर्खों की संख्या बढ़ाना नहीं चाहते थे।

व्यक्तिगत और सामाजिक नैतिकता में योगदान: गांधीजी के ये सिद्धांत व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर नैतिक विकास को बढ़ावा देते हैं:

  • व्यक्तिगत स्तर पर: ये सिद्धांत आत्म-अनुशासन, आंतरिक शुद्धि और इंद्रियों पर नियंत्रण सिखाते हैं। वे व्यक्ति को अहंकार, लोभ और भौतिक इच्छाओं से ऊपर उठने में मदद करते हैं। यह व्यक्ति को सत्य की खोज और प्रेम की कद्र करने में सक्षम बनाता है, क्योंकि निर्भयता सभी सद्गुणों के विकास के लिए अनिवार्य है।

  • सामाजिक स्तर पर: ये सिद्धांत सामाजिक जिम्मेदारी, समानता और भाईचारे को बढ़ावा देते हैं। शारीरिक श्रम पर जोर और यज्ञ की अवधारणा समाज में सभी व्यवसायों को समान महत्व देती है और श्रमजीवी वर्ग को उनका मूल महत्व प्रदान करती है। सादगी और अपरिग्रह का पालन समाज में धन के अत्यधिक संचय को एक अपराध मानता है। यह सादा जीवन और उच्च विचार के आदर्श को स्थापित करता है, जो एक गरीब राष्ट्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये सिद्धांत एक ऐसे समाज का निर्माण करते हैं जहाँ कोई छुआछूत, जाति, धर्म या रंग का भेद न हो और सभी नागरिक समान हों।

संक्षेप में, गांधीजी के ब्रह्मचर्य और स्वाद पर विजय के सिद्धांत केवल व्यक्तिगत आचरण के नियम नहीं थे, बल्कि वे एक गहरे नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के उपकरण थे। उनका मानना था कि व्यक्तिगत शुद्धि के बिना सामाजिक उत्थान संभव नहीं है, और ये दोनों सिद्धांत इस शुद्धि के मूल आधार थे।


5. महात्मा गांधी ने महिलाओं के सशक्तिकरण और समानता के लिए क्या दृष्टिकोण अपनाया? पर्दा-प्रथा, लैंगिक भेदभाव और आत्म-बलिदान के संबंध में उनके विचारों का विश्लेषण करें।

महात्मा गांधी ने महिलाओं के सशक्तिकरण और समानता के लिए एक गहरा और दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाया, जो उनके व्यापक नैतिक और सामाजिक दर्शन का अभिन्न अंग था। उनका मानना था कि महिलाओं में आंतरिक शक्ति और अहिंसा का पालन करने की असाधारण क्षमता होती है।

महिलाओं का सशक्तिकरण और समानता:

गांधीजी का दृढ़ विश्वास था कि भविष्य महिलाओं के हाथ में है। उन्होंने महिलाओं को सामाजिक और राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया।

  • आंतरिक शुद्धि और अहिंसा: गांधीजी ने महसूस किया कि महिलाओं में भी समाज में फैली "जहर" (घृणा और भेदभाव) मौजूद है, और उन्होंने अपनी एक महिला सहयोगी से इस "जहर" को मिटाने का प्रयास करने का आग्रह किया, यह सुझाव देते हुए कि महिलाओं को अपनी आंतरिक पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए स्वयं काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अहिंसा के पालन में महिलाएँ पुरुषों से आसानी से आगे बढ़ सकती हैं।

  • सार्वजनिक जीवन में भागीदारी: उन्होंने आश्रम की महिलाओं को मूलभूत आध्यात्मिक व्रतों से सुसज्जित करके अहिंसक स्वतंत्रता संग्राम में उचित भाग लेने के लिए भेजा। वह चाहते थे कि महिलाएँ समाज में सक्रिय भूमिका निभाएँ और उन्होंने एक घटना का उदाहरण दिया जहाँ उन्होंने एक युवती को बताया कि वे तभी कुर्ता पहनेंगे जब 40 करोड़ भाई-बहन ढके हुए होंगे, जो सामूहिक जिम्मेदारी और समानता को दर्शाता है।

  • पारंपरिक भूमिकाओं को चुनौती: उन्होंने महिलाओं से पुरुषों को खुश करने के लिए श्रृंगार करने की प्रवृत्ति को चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि यदि वे सार्वजनिक जीवन में भाग लेना चाहती हैं तो उन्हें ऐसे बाहरी प्रदर्शनों से इनकार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि महिलाओं में "हीनता-ग्रंथि" उनकी दासता के कारण पैदा हुई है।

  • पारिवारिक संबंधों में समानता: उन्होंने वैवाहिक संबंधों में समानता पर भी जोर दिया। उन्होंने देखा कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे पुरुष भी अत्यधिक काम करने का आग्रह करते हैं, और उन्होंने उनकी पत्नी को "गृह-शासन" (घरेलू नियंत्रण) के माध्यम से उन्हें नियंत्रित करने की सलाह दी, जिससे यह संकेत मिलता है कि उन्हें पारिवारिक जीवन में महिलाओं के समान अधिकार और जिम्मेदारी प्राप्त होनी चाहिए।

पर्दा-प्रथा (घूंघट):

प्रदत्त स्रोतों में सीधे तौर पर "पर्दा-प्रथा" के खिलाफ गांधीजी के विचारों का विस्तृत वर्णन नहीं है, लेकिन एक अध्याय का शीर्षक "आजसे घूंघट हटाता हूं" उनके इस प्रथा के विरोध का संकेत देता है। उनके सामान्य सिद्धांतों को देखते हुए, गांधीजी सत्य, स्पष्टता और किसी भी चीज़ को न छिपाने ("खानगी" शब्द को मन से निकाल देना चाहिए) पर जोर देते थे, जो स्वाभाविक रूप से ऐसी प्रथाओं के विरुद्ध होगा जो छिपाव और खुलेपन की कमी को बढ़ावा देती हैं। ब्रह्मचर्य को केवल शारीरिक संयम के बजाय मन, वाणी और कर्म से पूर्ण संयम मानने का उनका दृष्टिकोण भी बाहरी नियंत्रणों के बजाय आंतरिक शुद्धि पर केंद्रित था।

लैंगिक भेदभाव:

गांधीजी ने लैंगिक भेदभाव को समाज के लिए एक गंभीर समस्या माना और इसके उन्मूलन के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयासों पर जोर दिया:

  • आंतरिक पूर्वाग्रहों का उन्मूलन: उन्होंने महिलाओं में फैले "जहर" (भेदभाव) को दूर करने का आह्वान किया, जिसका अर्थ था कि महिलाओं को स्वयं उन आंतरिक पूर्वाग्रहों से मुक्त होना होगा जो शायद समाज द्वारा उनमें रोपे गए थे।

  • महिलाओं का सम्मान: उन्होंने महिलाओं की "दासता" के कारण उनमें उत्पन्न "हीनता-ग्रंथि" को पहचानने पर जोर दिया।

  • विवाह का दृष्टिकोण: गांधीजी का मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में केवल एक ही विवाह करना चाहिए। उन्हें "सिविल मैरिज" (नागरिक विवाह) पसंद नहीं था जहाँ हृदयों की एकता और परस्पर सहमति न हो। उनका यह दृष्टिकोण विवाह को एक पवित्र और आध्यात्मिक बंधन के रूप में देखता था, न कि केवल एक सामाजिक या भौतिक व्यवस्था के रूप में, जिससे महिलाओं के सम्मान और उनकी भूमिका को महत्व मिलता था। उनका मानना था कि गृहस्थ आश्रम और ब्रह्मचर्य आश्रम दोनों आध्यात्मिक मार्ग पर समान रूप से उच्च हो सकते हैं, बशर्ते उनमें "परिणीत ब्रह्मचर्य" (विवाहित ब्रह्मचर्य) का पालन हो। यह उन पारंपरिक पदानुक्रमों को चुनौती देता था जो अक्सर विवाहित महिलाओं के आध्यात्मिक मार्गों को कम आंकते थे।

आत्म-बलिदान (Self-Sacrifice):

आत्म-बलिदान गांधीजी के दर्शन का एक मूलभूत सिद्धांत था, जो अहिंसा और अनासक्ति योग के साथ गहराई से जुड़ा हुआ था।

  • अनासक्ति योग और सेवा: गांधीजी के लिए, अनासक्ति योग का अर्थ है फल की आसक्ति छोड़कर कर्म करना, आशा-रहित होकर कर्म करना और निष्काम होकर कर्म करना। उन्होंने "यज्ञ" (बलिदान) का अर्थ "सेवा" (दूसरों के लिए किया गया श्रम या परोपकार) बताया। उनका मानना था कि व्यक्ति को केवल जीने के लिए खाना चाहिए, खाने के लिए नहीं जीना चाहिए [Source from previous conversation history], और यह शरीर भोग-विलास के लिए नहीं, बल्कि लोकसेवा के लिए है।

  • निर्भयता: गांधीजी का मानना था कि आध्यात्मिक जीवन के लिए निर्भयता अनिवार्य है। निर्भयता के बिना सत्य और अहिंसा का पालन असंभव है। आत्म-बलिदान अक्सर भय पर विजय प्राप्त करने की मांग करता है।

  • निजी जीवन में उदाहरण: उन्होंने स्वयं अपने जीवन में इस सिद्धांत का पालन किया। वे हमेशा फकीरी की हालत में रहना चाहते थे और उन्हें किसी भी चीज़ को जेब में रखने का मोह न हो। उन्होंने सरकारी खर्चों में कमी की वकालत की और स्वयं साधारण जीवन जिया, यहाँ तक कि अपनी धोती भी खुद धोते थे, यह मानते हुए कि जीवन में स्वच्छता और सफाई से बड़ा कोई काम नहीं है। वे गरीबी को ईश्वर के करीब रहने का एक साधन मानते थे।

  • सत्य और आत्म-शुद्धि: गांधीजी सत्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण अपनी गलतियों को स्वीकार करने से कभी नहीं हिचकिचाते थे, चाहे वह चेचक के टीके के संबंध में हो या अन्य व्यक्तिगत चूक। उनके लिए, अपनी गलती स्वीकार करना आत्म-शुद्धि का एक रूप था। उनका मानना था कि जब तक मन में भय है, तब तक सत्य और अहिंसा का पालन संभव नहीं है।

  • अहिंसा और बलिदान: उन्होंने कहा कि अहिंसा तभी सफल हो सकती है जब उसे शक्ति से अपनाया जाए, न कि कायरता से। उनका यह भी मानना था कि "जब मनुष्य शारीरिक या मानसिक रूप से जरा भी उत्तेजित हुए बिना सुंदरतम नग्न अप्सरा के साथ भी सो सके, तभी कहा जा सकता है कि उसने यह स्थिति प्राप्त कर ली है"। यह ब्रह्मचर्य के माध्यम से पूर्ण आत्म-संयम और इच्छाओं के बलिदान का एक चरम उदाहरण है।

संक्षेप में, गांधीजी ने महिलाओं को समाज के बराबर और सशक्त सदस्य के रूप में देखा, जिनमें पुरुषों से भी अधिक अहिंसा की क्षमता है। उन्होंने पारंपरिक भेदभावपूर्ण प्रथाओं को चुनौती दी और महिलाओं को आंतरिक शुद्धि, आत्म-अनुशासन और निःस्वार्थ सेवा के माध्यम से सशक्त बनाने पर जोर दिया, जो उनके आत्म-बलिदान के व्यापक सिद्धांत के अनुरूप था।

6. अहिंसा और सत्य का जीवन-दर्शन

महात्मा गांधी का 'अहिंसा' का सिद्धांत केवल शारीरिक हिंसा के अभाव से कहीं अधिक गहरा और व्यापक है। यह सत्य, प्रेम, आंतरिक शुद्धता और आत्म-नियंत्रण पर आधारित एक जीवन पद्धति है, जिसे उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन और सार्वजनिक आंदोलनों दोनों में व्यवहार में लाया।

अहिंसा की व्यापक परिभाषा:

सत्य से जुड़ाव: गांधीजी के लिए, सत्य ही ईश्वर है। उन्होंने कहा कि "सत्य ही परमेश्वर है कहना अधिक योग्य है"। अहिंसा सत्य की ही अभिव्यक्ति है। जहाँ सत्य नहीं, वहाँ शुद्ध ज्ञान की संभावना नहीं है।

प्रेम और सद्भाव: गांधीजी ने 'प्रेम' शब्द के बजाय 'अहिंसा' को प्राथमिकता दी, क्योंकि 'प्रेम' शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं, और विकार के अर्थ में मानव प्रेम मलिन हो सकता है। उनके अनुसार, अहिंसा 'परम शुद्धता' है, जिसका अर्थ आंतरिक और बाह्य दोनों प्रकार की शुद्धता है। यह दूसरों पर दया करने का भाव नहीं, बल्कि निस्वार्थ सेवा है।

आंतरिक नियंत्रण: यह केवल बाहरी आचरण नहीं, बल्कि मन, वाणी और कर्म से विषयवासना से रहित होना है। सच्चा ज्ञान का परिणाम भी आत्म-नियंत्रण है। अहिंसा को पूरी तरह से अपनाने के लिए, व्यक्ति को क्रोध, भय और प्रतिशोध से मुक्त होकर मरने के लिए तैयार रहना चाहिए।

निष्काम कर्म: यह कर्म के फल की इच्छा छोड़कर निरंतर कर्तव्य कर्म करने का उपदेश है, जो गीता का मुख्य संदेश भी है। कर्मयोग वह है जिसके द्वारा आत्मा शरीर के बंधन से मुक्त होती है।

अहिंसा के सिद्धांत का व्यवहार में लाना (उनके जीवन के उदाहरण):

गांधीजी ने अपने जीवन के हर पहलू में अहिंसा के सिद्धांत को जिया और परखा:

व्यक्तिगत जीवन में प्रयोग:

    ◦ माता के प्रतिज्ञाओं का पालन: उन्होंने अपनी मां को दिए गए वचनों को "मरणांत" तक पालन किया, जिसने उन्हें मांसाहार और अन्य बुराइयों से बचाया।

    ◦ शाकाहार: शुरू में मां के प्रतिज्ञा के कारण शाकाहारी बने, लेकिन बाद में उन्होंने इसे विचारपूर्वक अपनाया और दूसरों को भी शाकाहार अपनाने के लिए प्रेरित किया।

    ◦ तपस्या और सादगी: उन्होंने वकालत की पढ़ाई के दौरान विलासिता का त्याग कर सादगी और मितव्ययिता को अपनाया। उन्होंने "अर्धनग्न फकीर" के अपमानजनक उपनाम को प्रशंसासूचक माना, क्योंकि उनकी आकांक्षा पूर्णतः नग्न बनने की थी, शाब्दिक और लाक्षणिक दोनों अर्थों में।

    ◦ आत्म-शुद्धि और व्रत: उन्होंने स्वीकार किया कि व्रत बंधन नहीं, बल्कि स्वतंत्रता का द्वार हैं, और उन्हें अपने प्रयासों में सफलता न मिलने का कारण अपने मन का दृढ़ न होना था।

    ◦ ब्रह्मचर्य के प्रयोग: गांधीजी ने ब्रह्मचर्य को एक महत्वपूर्ण व्रत माना, जिससे विकार नष्ट हो जाते हैं। उनका मानना था कि पूर्ण ब्रह्मचर्य की स्थापना होने पर सभी विकार समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने अपनी पोती मनु के साथ सोने का प्रयोग भी किया, जिसे कुछ साथियों ने गलत समझा, लेकिन उनका उद्देश्य आंतरिक शुद्धता और ब्रह्मचर्य के आदर्श को समझना और साधना था।

    ◦ श्रम और स्वावलंबन: उन्होंने अपने आश्रम में सफाई सहित सभी कार्य स्वयं करने पर जोर दिया।

दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह:

    ◦ अधिकारों के लिए संघर्ष: डरबन में पगड़ी उतारने से इनकार करना उनके आत्मसम्मान की रक्षा का पहला अनुभव था। उन्होंने 'कुली बैरिस्टर' जैसे अपमानजनक संबोधनों को स्वीकार किया।

    ◦ सत्याग्रह का जन्म: 'पैसिव रेजिस्टेंस' (निष्क्रिय प्रतिरोध) नाम को त्याग कर उन्होंने 'सत्याग्रह' शब्द गढ़ा, जिसका अर्थ सत्य या शुभ आग्रह है। यह हिंसा के बिना सत्य के प्रति आग्रह का एक शक्तिशाली तरीका था।

    ◦ अहिंसक विरोध: उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों की दुर्दशा को दूर करने के लिए अहिंसक आंदोलन चलाए।

    ◦ झूलू विद्रोह में सेवा: उन्होंने झूलू विद्रोह में अंग्रेजों के घायल सैनिकों की सेवा की, भले ही वे विद्रोहियों के खिलाफ थे। यह उनकी वफादारी और सेवाभाव का प्रदर्शन था।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रयोग:

    ◦ चंपारण सत्याग्रह: चंपारण के किसानों के लिए उनका संघर्ष अहिंसा और सत्य का एक बड़ा प्रयोग था।

    ◦ अहमदाबाद मिल हड़ताल: उन्होंने मिल मजदूरों के संघर्ष का नेतृत्व अहिंसक हड़ताल के माध्यम से किया, इसे सत्याग्रह का एक प्रयोग मानते हुए।

    ◦ खेड़ा सत्याग्रह: इस आंदोलन ने गुजरात के किसान समाज में राजनीतिक शिक्षा और जागरूकता लाई।

    ◦ रौलेट बिल का विरोध: वे आतंकवाद के कट्टर विरोधी थे और उन्होंने बम और पिस्तौल के मुकाबले सत्याग्रह को अधिक प्रभावी उपाय बताया।

    ◦ साम्प्रदायिक सद्भाव: उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता पर हमेशा जोर दिया। उन्होंने विभाजन के 'दो राष्ट्रों' के सिद्धांत को 'असत्य' कहा और इसे दृढ़ता से अस्वीकार किया। नोआखाली और बिहार में हुए दंगों के दौरान उन्होंने शांति स्थापित करने के लिए पैदल यात्रा की, उपवास किए, और साम्प्रदायिक पागलपन को शांत करने के लिए "वीरों की अहिंसा" की आवश्यकता पर जोर दिया।

    ◦ अहिंसा के बल पर स्वतंत्रता: उनका विश्वास था कि यदि भारतवासी दृढ़ता से 'नहीं' कहना सीख लें तो विदेशी सेनाएं उस पर आक्रमण करने का साहस नहीं करेंगी। उन्होंने कहा कि अहिंसा सांप्रदायिक संघर्ष का उतनी ही सरलता से सामना कर सकती है जितनी सरलता से उसने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता का युद्ध लड़ा है।

    ◦ सरकार के प्रति रवैया: उन्होंने मंत्रियों से अपेक्षा की कि वे सरकारी गोदामों में अनाज जमा करें ताकि अमीर और गरीब सबको समान रूप से अनाज मिल सके।

गांधीजी का अहिंसा का सिद्धांत केवल हिंसा न करने तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक सक्रिय, प्रेमपूर्ण और आत्म-नियंत्रित जीवन जीने की प्रेरणा देता था, जिसका उद्देश्य अन्याय का सत्य के बल पर प्रतिरोध करना और समाज में सद्भाव स्थापित करना था। उन्होंने अपने जीवन के हर कार्य में इस सिद्धांत को लागू किया और यह सिद्ध किया कि यह व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्तरों पर परिवर्तन लाने में सक्षम है।

7. सत्य, नम्रता और निस्वार्थ सेवा का नेतृत्व

गांधीजी की नेतृत्व शैली और दर्शन उनके सत्यनिष्ठा, नम्रता, और अनासक्ति जैसे मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित थे। उन्होंने अपने जीवन को सत्य की खोज और उसके प्रयोगों के लिए समर्पित किया।

गांधीजी की सत्यनिष्ठा और नम्रता गांधीजी की नेतृत्व शैली उनकी सत्यनिष्ठा और नम्रता से ओतप्रोत थी। उनका मानना था कि मनुष्य को सबसे पहले अपने प्रति सच्चा बनना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति दोष करना ही नहीं चाहता, तो उसके पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं होगा। वे हमेशा अपनी गलतियों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखने और दूसरों की गलतियों को पहाड़ पर से देखने की सलाह देते थे, ताकि हजारों पापों से बचा जा सके। उन्होंने कहा कि विश्वास का दिखावा व्यर्थ से भी बुरा होता है, हृदय में विश्वास हो तभी उसका मूल्य है।

गांधीजी की नम्रता उनके हर कार्य में झलकती थी। उन्हें किसी भी व्यक्ति, यहाँ तक कि एक छोटे बच्चे से भी अच्छी बातें सीखने में कोई शर्म नहीं थी। वे सरकारी धन के खर्च के प्रति भी अत्यंत सचेत थे, यह कहते हुए कि जो पैसा खर्च किया जाता है वह अंग्रेजों का नहीं, बल्कि भारत की गरीब जनता का है। उन्होंने दिखावे और आडंबर को त्याग कर सादगी को अपनाया। उन्होंने अपने साथियों को भी अनावश्यक खर्च से बचने की सलाह दी, जैसे मुंह धोने के लिए गर्म पानी का उपयोग, जब लोगों के पास रोटी पकाने के लिए भी लकड़ी न हो। उनके लिए स्वच्छता और सफाई का काम जीवन में सबसे महत्वपूर्ण था, यहाँ तक कि वे स्वयं अपने पैरों से गंदी हुई धोती को भी धोने में संकोच नहीं करते थे।

'पांचवें स्तर के नायक' की विशेषताएँ हालांकि स्रोतों में 'पांचवें स्तर के नायक' (Fifth-level hero) शब्द का सीधा उल्लेख नहीं है, गांधीजी के गुण और कार्यशैली इस अवधारणा को पूरी तरह से दर्शाते हैं, जो विनम्रता को प्रचंड इच्छाशक्ति और सेवाभाव के साथ जोड़ता है:

• अभय और आत्म-विश्वास: गांधीजी का मानना था कि निर्भयता आध्यात्मिक जीवन की पहली और सबसे आवश्यक शर्त है। उन्होंने लोगों को निर्भय बनने और अहिंसक शक्ति से उत्पन्न होने वाले आत्म-विश्वास में अपनी सुरक्षा खोजने के लिए प्रोत्साहित किया। उनका कहना था कि यदि सत्य अपनी रग-रग में भरा हो, तो उसकी आवाज को कोई दबा नहीं सकता।

• उदाहरण बनकर नेतृत्व: वे स्वयं अहिंसा के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण थे। जब उन्होंने गांव की सफाई का काम हाथ में लिया, तो खुद झाड़ू उठाई, यह सिखाते हुए कि गंदगी की सफाई करना कोई "हल्का काम" नहीं है। उनका जीवन ही उनके सिद्धांतों का जीता-जागता प्रमाण था। वे दृढ़तापूर्वक मानते थे कि सच्ची अहिंसात्मक शक्ति किसी भी संगठित शत्रु बल को बेकार कर सकती है।

• निस्वार्थ सेवा: गांधीजी का जीवन लोकसेवा को समर्पित था। वे मानते थे कि ईश्वर को भजने का अर्थ है जगत् की सेवा करना। उन्होंने हरिजनों के उत्थान के लिए धन-संग्रह किया, जिसमें पैसा नहीं बल्कि अधिक से अधिक लोगों का सक्रिय सहयोग महत्वपूर्ण था। वे मंत्रियों को भी साहबी ठाठ से रहने और सरकारी साधनों का घरेलू उपयोग करने से मना करते थे, क्योंकि यह लोकसेवा के उद्देश्य के विरुद्ध था।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभाव गांधीजी के नेतृत्व ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और उसे एक जन आंदोलन में बदल दिया। उन्होंने अहिंसा को एक शक्तिशाली हथियार के रूप में प्रस्तुत किया, यह विश्वास रखते हुए कि यह देश की आजादी की चाभी और सांप्रदायिक शांति की कुंजी है।

• साम्प्रदायिक एकता: उन्होंने हिंदू-मुस्लिम भाईचारे और एकता पर विशेष जोर दिया। नोआखाली में हुई हिंसा से वे बहुत दुखी थे, और उन्होंने कहा कि प्रतिशोध न तो शांति का मार्ग है और न मानवता का।

• ग्राम स्वराज और शरीर-श्रम: उन्होंने न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता बल्कि ग्राम स्वराज की भी कल्पना की, जिसमें ग्राम पंचायतें शांति और सहकार से अपनी जिम्मेदारी संभालें। वे शरीर-श्रम और खादी को स्वदेशी धर्म का हिस्सा मानते थे, जो करोड़ों देशवासियों को जीवित रख सकता था।

• विभाजन पर पीड़ा: भारत का विभाजन उनके लिए अत्यंत पीड़ादायक था। उन्होंने इसे कांग्रेस की स्वीकृति के कारण एक विवशता के रूप में स्वीकार किया, पर वे इस पाप के भागी नहीं बनना चाहते थे।

वैश्विक नेताओं को प्रेरणा गांधीजी के अहिंसक सिद्धांत और नैतिक आचरण ने विश्व भर के नेताओं को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि अहिंसा एक सर्वोच्च शक्ति है।

• विश्व शांति: उन्होंने विश्व शांति के लिए सत्य और अहिंसा पर आधारित संगठन की वकालत की। वे ब्रिटेन और हिंदुस्तान के बीच उत्तम मित्रतापूर्ण संबंधों की कल्पना करते थे, जहाँ अंग्रेज पूरी ईमानदारी से भारत से हट जाएँ।

• मानवता और भाईचारा: एशियाई सम्मेलन में, उन्होंने स्पष्ट किया कि वे यूरोपीय या अन्य देशों से लड़ने या बदला लेने के लिए एकत्र नहीं हुए हैं, बल्कि भारत की अहिंसक स्वतंत्रता का उपयोग अन्य देशों को दबाने के बजाय सहयोग में करना चाहते हैं। उनके जीवन को मानवजाति के लिए एक दिव्य ज्योति के समान माना गया। उन्होंने जॉन रस्किन (John Ruskin) और लियो टॉल्स्टॉय (Leo Tolstoy) जैसे पश्चिमी विचारकों से प्रेरणा ली और स्वयं उनके सिद्धांतों को अपने जीवन में लागू किया।

संक्षेप में, गांधीजी की नेतृत्व शैली सत्य, अहिंसा, नम्रता, और निस्वार्थ सेवा के सिद्धांतों का एक अनूठा संगम थी। उन्होंने इन सिद्धांतों को व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में सफलतापूर्वक लागू किया, जिससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक अद्वितीय नैतिक आधार मिला और उन्होंने विश्व भर में नैतिक नेतृत्व का एक स्थायी उदाहरण स्थापित किया।



विस्तृत समयरेखा

1894: 

  • गांधी ने नेटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की, जो दक्षिण अफ्रीका में पहली उपनिवेशवाद विरोधी राजनीतिक संस्था थी।

1902:

  • अफ्रीकन पीपल्स ऑर्गनाइजेशन की स्थापना हुई।

1906:

  • गांधी ने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया।

1907:

  • ट्रांसवाल में रजिस्ट्रेशन एक्ट (ब्लैक एक्ट) लागू किया गया, जिसमें एशियाई मूल के लोगों को अंगूठे के निशान वाले पंजीकरण प्रमाण पत्र लेने के लिए मजबूर किया गया। गांधी ने इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और इसका मुकाबला करने के लिए पैसिव रेजिस्टेंस एसोसिएशन की स्थापना की।

  • गांधी ने दक्षिण अफ्रीका की सरकार को 'बर्बर' बताया, जिसने एक नस्लवादी आव्रजन प्रतिबंध अधिनियम लागू किया था।

  • जनरल स्मट्स ने घोषणा की कि ट्रांसवाल को एक श्वेत व्यक्ति का देश बनाया जाएगा और अपंजीकृत भारतीयों को निर्वासित करने के सरकारी अधिकार को खत्म करने की गांधी की मांग को खारिज कर दिया।

  • गांधी को ट्रांसवाल में बिना परमिट के प्रवेश करने के लिए पहली बार गिरफ्तार किया गया और दो महीने की साधारण कैद की सजा सुनाई गई।

  • नस्लीय अलगाव (रंगभेद) के बीज बोए गए जब ट्रांसवाल के शासकों ने श्वेतों के लिए अलग कानूनों और 'हीन' नस्लों के लिए अलग कानूनों को स्पष्ट किया।

  • गांधी ने 1907 में शुरू किए गए संघर्षपूर्ण सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जो 1913 में अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया, जिसमें नेटाल की कोयला खदानों के 5,000 अनुबंधित मजदूरों ने एक विशाल जुलूस में भाग लिया।

1908:

  • 16 अगस्त को, गांधी ने जोहान्सबर्ग की हमीदिया मस्जिद में "ब्लैक एक्ट" के तहत 2000 से अधिक पंजीकरण प्रमाण पत्रों को सार्वजनिक रूप से जलाया। यह उनके राजनीतिक जीवन में पहला बोनफायर था।

  • गांधी को 1908 में बिना परमिट के नेटाल से ट्रांसवाल में प्रवेश करने के लिए जेल हुई।

  • गांधी और स्मट्स के बीच एक समझौता टूट गया क्योंकि स्मट्स ने अपने वचन का पालन नहीं किया, जिससे सत्याग्रह तेज हो गया।

1912:

  • अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की स्थापना हुई।

  • अक्टूबर में, अंग्रेज और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर गोपाल कृष्ण गोखले, भारत सेवक समिति के सदस्य, एक महीने के लिए दक्षिण अफ्रीका आए।

1913:

  • साउथ अफ्रीकन इंडियन रिलीफ बिल (South African Indian Relief Bill) का प्रारूप तैयार किया गया, जिसमें गांधी द्वारा प्रस्तावित कुछ मुख्य मांगें शामिल थीं, लेकिन यह अपर्याप्त था।

1915:

  • गांधी ने बॉम्बे में लीग और कांग्रेस की बैठकें एक साथ आयोजित करवाईं, ताकि एकता की भावना पैदा हो सके।

  • गांधी भारत लौटे।

  • बिहार में नील की खेती से संबंधित अनिवार्य प्रथा को गांधी के प्रयासों से समाप्त कर दिया गया।

  • गिरमिटिया या अनुबंधित मजदूरों को विदेशों में भेजना बंद कर दिया गया।

1916:

  • भारत में एक 'नए महात्मा' की प्रसिद्धि फैलने लगी।

1917:

  • गांधी ने भारत में चंपारण के किसानों के दुखों को दूर करने के लिए काम किया। वह और राजकुमार शुक्ल चंपारण गए।

1918:

  • गांधी को वायसराय द्वारा युद्ध सहायता परिषद की बैठक में आमंत्रित किया गया, जहाँ उन्होंने प्रस्ताव का समर्थन किया।

  • गांधी ने खेड़ा में रंगरूट भर्ती करने का काम शुरू किया।

1920:

  • जालियाँवाला बाग हत्याकांड के संबंध में हंटर-कमीशन ने जनरल डायर के 'घोर भूल' करने का निर्णय दिया।

  • राज सचिव एडविन एस. मांटेग्यू ने वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड को 26 मई, 1920 को एक सरकारी पत्र में जालियाँवाला बाग हत्याकांड के बारे में लिखा।

  • जनवरी 1931 के अंत में लंदन में संपन्न हुई गोलमेज सम्मेलन विफल रहा, जिसमें गांधी पूर्ण स्वशासन की कांग्रेस की मांग को ब्रिटिश शासकों को मनाने में असफल रहे।

  • गांधी ने 'रॉलेट एक्ट' के विरोध में राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया, जिसके परिणामस्वरूप 6 अप्रैल को चौपाटी बीच पर एक बड़ी सार्वजनिक सभा हुई।

1921:

  • गांधी ने 31 जुलाई, 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी कपड़ों के खिलाफ अभियान शुरू किया, जिसमें स्वदेशी को बढ़ावा दिया गया।

  • प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत दौरे का बहिष्कार किया गया।

  • 28 जुलाई को, गांधी ने स्वशासन को आत्म-बलिदान पर आधारित बताया।

1924:

  • गांधी ने जेल से रिहा होने के बाद रचनात्मक कार्यक्रम पर ध्यान केंद्रित किया।

  • 17 अप्रैल को, गांधी ने विरोधियों के दृष्टिकोण का सम्मान करने और शांतिपूर्ण ढंग से मतभेदों को दूर करने के महत्व पर बल दिया।

1925:

  • 12 मार्च को, गांधी ने कृत्रिम गर्भनिरोधक उपायों के विरोध में लिखा।

  • 6 अगस्त को, गांधी ने धर्म परिवर्तन को अवांछनीय बताया।

  • 29 जनवरी को, गांधी ने स्वराज को जनता में अपनी शक्ति को पहचानने और सरकार पर नियंत्रण करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया।

1926:

  • अप्रैल में, लॉर्ड इरविन ने रीडिंग का स्थान लिया।

  • गांधी ने अपनी पुस्तक 'यंग इंडिया' में मशीनों के उपयोग के संबंध में अपने विचार प्रस्तुत किए, जिसमें कहा गया कि वे मानव प्रयासों का समर्थन करें और बोझ को कम करें।

  • 8 जुलाई को, गांधी ने बताया कि सच्चे ईसाई पादरी ईसा के संदेश को चुने हुए व्यक्तियों तक ही सीमित रखते हैं।

1927:

  • 29 दिसंबर को, गांधी ने इच्छाशक्ति के साथ भावना को संयमित करने के महत्व पर जोर दिया।

1928:

  • 1 नवंबर को, गांधी ने अपनी अहिंसा के अभ्यास में अपनी अपूर्णताओं को स्वीकार किया।

1929:

  • 20 जून को, गांधी ने गीता के पवित्र संदेश के अनुसार जीवन जीने का दृढ़ निश्चय करने का आग्रह किया।

  • 4 जुलाई को, गांधी ने शांति और अहिंसक प्रतिरोध के माध्यम से शोषण को रोकने की बात की।

  • 5 दिसंबर को, गांधी ने पूंजीपतियों को किसानों के संरक्षक और विश्वसनीय मित्र बनने का आग्रह किया।

1930:

  • फरवरी में, कांग्रेस कार्यकारी समिति ने वास्तविक स्वशासन प्राप्त करने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। गांधी ने नमक कर के विरोध का प्रस्ताव रखा।

  • 5 अप्रैल को, गांधी दांडी पहुंचे और अगले दिन सुबह उन्होंने समुद्र किनारे से नमक का एक ढेला उठाकर नमक कानून तोड़ा, जो राष्ट्रव्यापी सविनय अवज्ञा का संकेत था।

  • 4 मई को, गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया।

  • 21 मई को, यूनाइटेड प्रेस वायर सेवा ने ब्रिटिश अत्याचारों की रिपोर्ट प्रसारित की।

  • नवंबर में, प्रधान मंत्री मैकडॉनल्ड ने लंदन में एक गोलमेज सम्मेलन बुलाई, लेकिन कांग्रेस ने इसमें भाग नहीं लिया।

1931:

  • 5 मार्च को गांधी-इरविन समझौता संपन्न हुआ, जिसके अनुसार बहिष्कार आंदोलन वापस ले लिया गया।

  • 26 मार्च को, गांधी ने पूर्ण स्वराज का अर्थ 'भारत के नर-कंकालों का उद्धार' बताया।

  • सितंबर में, गांधी ने इरविन से मुलाकात की, जिन्होंने उन्हें धोखेबाज और असंभव दुराग्रही नहीं माना।

  • अक्टूबर में, लंदन में दूसरे गोलमेज सम्मेलन के दौरान, गांधी ने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में भारत की भविष्य की भूमिका पर अपने विचार प्रस्तुत किए, जिसमें समानता और प्रेम के धागे पर आधारित साझेदारी पर जोर दिया गया।

  • 26 नवंबर को, गांधी ने न्यासियों की अवधारणा का प्रस्ताव रखा, जिसमें बुद्धिमान व्यक्ति राज्य के हित में अपनी प्रतिभा का उपयोग करेंगे और उनकी अतिरिक्त कमाई का बड़ा हिस्सा राज्य की भलाई के लिए उपयोग किया जाएगा।

  • दिसंबर में, गांधी यूरोप से लौटे और बॉम्बे में उतरे, जहां उन्हें पता चला कि वायसराय लॉर्ड विलिंगडन ने गांधी-इरविन समझौते का उल्लंघन किया है।

  • गांधी ने 'यंग इंडिया' में 'गुंडाराज' शीर्षक के तहत जनता से 'व्यवस्थित गुंडागर्दी' का मुकाबला अधिक सहन करके करने का आह्वान किया।

1932:

  • 3 जनवरी को, गांधी ने वायसराय को सूचित किया कि कांग्रेस बिना किसी दुर्भावना के और सख्ती से अहिंसक तरीके से सविनय अवज्ञा आंदोलन को फिर से शुरू करेगी।

  • अगली सुबह, विलिंगडन ने गांधी को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें यरवडा जेल ले जाया गया।

1933:

  • 15 जुलाई को, गांधी ने विलिंगडन को एक टेलीग्राम भेजा जिसमें संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करने के लिए एक मुलाकात का अनुरोध किया गया।

  • 1 दिसंबर को, गांधी ने बच्चों और लड़कियों के लिए शिक्षा के आदर्शों पर अपने विचार साझा किए, जिसमें शारीरिक श्रम और चरित्र निर्माण पर जोर दिया गया।

1934:

  • 2 अगस्त को, गांधी ने कम्युनिज्म का समर्थन किया लेकिन अहिंसा के साधन के रूप में हिंसा का विरोध किया।

  • 20 अप्रैल को, गांधी ने विश्वास व्यक्त किया कि ईश्वर का अस्तित्व ज्यामिति के स्वयं सिद्ध सत्य के समान है।

  • 23 नवंबर को, गांधी ने भारत जैसे अधिक जनसंख्या वाले देशों में मशीनों के हानिकारक प्रभाव के बारे में लिखा।

1935:

  • 22 मार्च को, गांधी ने मानव मल का सदुपयोग करने और कंपोस्ट खाद बनाने के लाभों पर चर्चा की।

  • 29 जून को, गांधी ने आत्म-निर्भरता, सादगी और आवश्यकता को कम करने के महत्व पर जोर दिया।

  • 5 जुलाई को, गांधी ने शारीरिक श्रम के महत्व और विलासिता के अनावश्यक होने पर जोर दिया।

  • 27 जुलाई को, गांधी ने विकेंद्रीकृत कपास की खेती और खादी योजना के महत्व पर जोर दिया।

  • 20 सितंबर को, गांधी ने मशीनों के मौजूदा उपयोग की आलोचना की जो कुछ लोगों के हाथों में संपत्ति केंद्रित करती हैं।

1936:

  • 4 सितंबर को, गांधी ने हरिजन में लिखा कि कांग्रेस की विचारधारा वाले लाखों लोग 1920 से ही मानते हैं कि अंग्रेजों का भारत पर शासन एक अभिशाप है।

  • 18 अप्रैल को, गांधी ने ईसा के वचन को उद्धृत किया कि "राज्य केवल प्रेम से ही प्राप्त किया जा सकता है," और जोर दिया कि सभी महान धर्मगुरुओं ने इसे दोहराया है।

1937:

  • 23 जनवरी को, गांधी ने ग्रामीण क्षेत्रों के उत्थान के लिए ग्रामीण उद्योगों के विकास के महत्व पर बल दिया।

  • 2 फरवरी को, गांधी ने हिंदी को अखिल भारतीय भाषा बनाने और अन्य भारतीय भाषाओं के सम्मान के साथ इसके उपयोग पर जोर दिया।

  • 2 जनवरी को, गांधी ने पूर्ण स्वराज के चार आयामों पर चर्चा की: विदेशी नियंत्रण से मुक्ति, पूर्ण आर्थिक स्वतंत्रता, नैतिक और सामाजिक उद्देश्य, और धर्म।

1938:

  • 24 सितंबर को, गांधी ने प्रार्थना के महत्व और ईश्वर में विश्वास के महत्व पर बल दिया।

  • 18 जनवरी को, गांधी ने भारतीय किसानों की गहरी संस्कृति और आध्यात्मिक ज्ञान का वर्णन किया।

1939:

  • फरवरी की शुरुआत में, गांधी की पत्नी को राजकोट में राज्य के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के लिए गिरफ्तार किया गया था।

  • 20 मई को, गांधी ने भूमि का स्वामित्व किसानों के पास होने और अहिंसक प्रतिरोध के महत्व पर जोर दिया।

  • 16 दिसंबर को, गांधी ने अन्यायपूर्ण व्यवस्था का मुकाबला करने में अहिंसक असहयोग की शक्ति पर बल दिया।

1940:

  • 8 अगस्त को, लॉर्ड लिनलिथगो ने कहा कि भारत का नया संविधान मुख्य रूप से भारतीयों की जिम्मेदारी होनी चाहिए।

  • सितंबर में, गांधी शिमला में लिनलिथगो से मिले और युद्ध में कांग्रेस की भागीदारी का विरोध किया।

  • 17 अक्टूबर को, विनोबा भावे ने एक व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया।

  • अगले दिन, सरकार ने "हरिजन" और अन्य संबंधित पत्रिकाओं पर प्रतिबंध लगा दिया।

  • 31 अक्टूबर को जवाहरलाल नेहरू को अक्टूबर में दिए गए युद्ध-विरोधी भाषणों के लिए गिरफ्तार किया गया और चार साल की कैद की सजा सुनाई गई।

  • नवंबर के मध्य में, सरदार वल्लभभाई पटेल को गिरफ्तार किया गया।

  • 13 अक्टूबर को, गांधी ने सत्याग्रह में उपवास के सिद्धांतों पर विस्तार से बताया, जिसमें आंतरिक प्रेरणा, धैर्य और उद्देश्य में दृढ़ता पर जोर दिया गया।

1941:

  • 20 मार्च को, गांधी ने 'स्थितियों को समझो' नामक एक लेख में कांग्रेस और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के महत्व पर जोर दिया।

1942:

  • जुलाई में, गांधी ने जिन्ना से राजनीतिक वार्ता के लिए मिलने का प्रस्ताव रखा।

  • अगस्त में, वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें अंग्रेजों से भारत छोड़ने का आग्रह किया गया।

  • 2 अगस्त को, गांधी ने ग्रामीण समाज के शासन बल के रूप में सत्याग्रह और अहिंसक प्रतिरोध की शक्ति पर जोर दिया।

  • 9 अगस्त को, गांधी ने कहा कि उनका धर्म उनका निजी मामला है और राज्य को इससे कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए।

  • 16 दिसंबर को, गांधी ने चेचक और खसरे जैसे रोगों के उपचार में चादर-स्नान के उपयोग को साझा किया।

1942-1944:

  • गांधी को आगा खान पैलेस में अपनी अंतिम कैद हुई।

1945:

  • 22 मार्च को, गांधी ने उरुली कांचन में गरीबों के लिए एक प्राकृतिक उपचार केंद्र खोला।

  • गांधी ने रामनाम को सभी बीमारियों के लिए रामबाण दवा बताया।

  • 9 जनवरी को, गांधी ने कहा कि प्राकृतिक उपचार हमें ईश्वर के करीब लाता है।

  • जून में, वेवेल ब्रिटिश सरकार से परामर्श के बाद भारत लौटे।

1946:

  • 3 मार्च को, गांधी ने प्राकृतिक उपचार के माध्यम से गांवों में बीमारियों को खत्म करने का प्रस्ताव रखा।

  • जुलाई में, राज्यों के शासक गांधी से पंचगनी में मिले।

  • अक्टूबर में, नेहरू और जिन्ना के बीच वार्ता शुरू हुई।

  • 7 मई को, गांधी ने कहा कि बीमारी से उतनी मौतें नहीं होतीं जितनी बीमारी के डर से होती हैं।

  • 15 सितंबर को, गांधी ने मृत्यु के भय को छोड़ने के महत्व पर जोर दिया ताकि भारत में अराजक समाज संभव हो सके।

  • 22 सितंबर को, गांधी ने कहा कि राज्य को धर्म में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

  • 28 अप्रैल को, गांधी ने दिलीप कुमार को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने अहिंसा, सत्य और ईश्वर में विश्वास पर अपने विचार साझा किए।

1947:

  • मई में, सत्ता हस्तांतरण पर गतिरोध के कारण देश का विभाजन लगभग अपरिहार्य हो गया।

  • 6 मई को, गांधी ने नई दिल्ली में जिन्ना से मुलाकात की।

  • 15 अगस्त को, भारत को स्वतंत्रता मिली।

1948:

  • 30 जनवरी को, महात्मा गांधी का निधन हो गया।

  • नेहरू ने गांधी की मृत्यु पर एक रेडियो प्रसारण में कहा कि भारत के जीवन से रोशनी चली गई है, लेकिन यह प्रकाश हमेशा रहेगा।

  • अक्टूबर में, लॉर्ड माउंटबेटन ने कहा कि समस्या का वास्तविक समाधान भारत को पूर्ण स्वतंत्रता देना है।

  • 6 अक्टूबर को, लॉर्ड माउंटबेटन ने अपनी बातचीत का खुलासा किया और कहा कि भारत को पूर्ण स्वतंत्रता देना ही सही समाधान है।

1952:

  • कमला देवी चट्टोपाध्याय को अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड का अध्यक्ष चुना गया।

1957:

  • "सत्य ही ईश्वर है" पुस्तक का पहला संस्करण प्रकाशित हुआ।

1958:

  • "मंगल-प्रभात" पुस्तक का पहला संस्करण प्रकाशित हुआ।

1959:

  • खादी से संबंधित पुस्तक "खादी" प्रकाशित हुई।

1962:

  • ब्रायन बॉयडेल ने गांधी की स्मृति में 'इन मेमोरियम' संगीत रचना शुरू की, जो जून तक पूरी हो गई।

1963:

  • 15 अगस्त को, 'ग्राम स्वराज' पुस्तक का हिंदी संस्करण प्रकाशित हुआ।

1989:

  • "ग्रामीण भारतीय महिलाओं में स्त्री रोग की उच्च घटना" (High prevalence of gynecological diseases in rural Indian Women) शीर्षक से एक शोध प्रकाशित हुआ, जिसमें बताया गया कि 92% ग्रामीण महिलाएं स्त्री रोग से पीड़ित हैं।

1990:

  • ग्लेन पेज़ ने 'गांधी का वैश्विक अहिंसक जागृति में योगदान' (Gandhi’s Contribution to Global Nonviolent Awakening) शीर्षक पर गांधी स्मारक व्याख्यान दिया।


पात्रों की सूची

महात्मा गांधी: (1869-1948)

  • भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता और अहिंसक सविनय अवज्ञा के पैरोकार। उन्हें 'बापू' के नाम से भी जाना जाता है। वे सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, सादगी और आत्म-निर्भरता के सिद्धांतों के प्रति दृढ़ थे। उन्होंने भारत में प्राकृतिक उपचार केंद्रों की स्थापना की और ग्रामीण उत्थान, स्वदेशी, और सभी धर्मों की समानता की वकालत की।

कस्तूरबा गांधी:

  • महात्मा गांधी की पत्नी, जिन्हें 'बा' के नाम से जाना जाता था। वे गांधी के शुरुआती आश्रमों के कुशल संचालन में सहायक थीं और आश्रमवासियों के लिए 'बा-मां' बन गईं। उन्होंने गांधी के साथ कई संघर्षों और आंदोलनों में भाग लिया।

राजकुमार शुक्ल:

  • चंपारण के एक किसान जिन्होंने महात्मा गांधी को चंपारण के किसानों के दुख को देखने के लिए आमंत्रित किया और उनके साथ वहां गए।

मोहनलाल पांड्या:

  • खेड़ा सत्याग्रह में गांधी के सहयोगी, जिन्होंने किसानों को अनुचित रूप से जब्त की गई प्याज की फसल काटने में नेतृत्व किया और जेल गए।

गोपाल कृष्ण गोखले:

  • गांधी के राजनीतिक गुरु, एक अंग्रेज और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर, और भारत सेवक समिति के सदस्य। उन्होंने गांधी के अद्भुत व्यक्तित्व और आध्यात्मिक शक्ति को पहचाना।

मोहम्मद अली (मौलाना मुहम्मद अली):

  • एक भारतीय मुस्लिम नेता और अली बंधुओं में से एक, जिन्होंने असहयोग आंदोलन में गांधी के साथ मिलकर काम किया।

शौकत अली:

  • भारतीय मुस्लिम नेता और अली बंधुओं में से एक, जिन्होंने गांधी के साथ मिलकर काम किया।

जवाहरलाल नेहरू:

  • भारत के पहले प्रधान मंत्री। गांधी उन्हें भक्त मानते थे, भले ही नेहरू धर्म के बाहरी आडंबरों के प्रति आलोचनात्मक थे। वे गांधी के साथ कई आंदोलनों में शामिल थे और भारत की स्वतंत्रता के बाद ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में भारत की भूमिका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सरदार वल्लभभाई पटेल:

  • भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख नेता, जो गांधी के करीबी सहयोगी थे। उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

लॉर्ड इरविन:

  • भारत के वायसराय (1926-1931)। गांधी के साथ उनके संबंध जटिल थे, लेकिन अंततः वे गांधी-इरविन समझौते पर पहुंचे।

लॉर्ड विलिंगडन:

  • भारत के वायसराय (1931-1936), जिन्होंने गांधी-इरविन समझौते का उल्लंघन किया और गांधी को गिरफ्तार करवाया।

मैकडॉनल्ड:

  • ब्रिटेन के प्रधान मंत्री, जिन्होंने नवंबर 1930 में गोलमेज सम्मेलन बुलाया।

अल्बर्ट आइंस्टीन:

  • प्रसिद्ध वैज्ञानिक, जिन्होंने परमाणु हथियारों के विनाशकारी परिणामों पर गांधी के विचारों को दोहराया और मानव जाति के जीवित रहने के लिए 'सोच के नए तरीकों' की आवश्यकता पर बल दिया।

सीज़र शावेज:

  • अमेरिकी श्रमिक और नागरिक अधिकार नेता, जिन्होंने गांधी के अहिंसक प्रतिरोध के सिद्धांतों को अपनाया।

नेल्सन मंडेला:

  • दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद विरोधी क्रांतिकारी और पूर्व राष्ट्रपति, जिन्होंने गांधी को अपनी शताब्दी के पहले दशकों में दक्षिण अफ्रीकी सरकार को 'आशंकित' करने वाले व्यक्ति के रूप में सराहा और उनकी रणनीतियों का पालन किया।

क्वामे न्क्रूमा:

  • घाना के पहले राष्ट्रपति, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में गांधी के अहिंसक आंदोलन के प्रभाव को स्वीकार किया।

हाना आरेंट:

  • प्रख्यात यहूदी विद्वान, जिन्होंने अपनी पुस्तक "एकमैन इन जेरूसलम: द बेनालिटी ऑफ एविल" में प्रलय में कुछ यहूदी नेताओं की मिलीभगत को उजागर किया।

पॉल वियर:

  • एक विद्वान जिन्होंने सामाजिक सुरक्षा के उद्भव पर शोध किया और इसे गांधीवादी आंदोलन के नैतिक नियमों और शांतिवादी आदर्शवाद की देन बताया।

ग्लेन पेज़:

  • एक वक्ता जिन्होंने 1990 के 'गांधी स्मारक व्याख्यान' में वैश्विक अहिंसक जागृति में गांधी के योगदान पर चर्चा की।

ब्रायन बॉयडेल:

  • आयरिश संगीतकार, जिन्होंने गांधी की हत्या से गहरा आघात लगने के बाद उनकी स्मृति में 'इन मेमोरियम' संगीत रचना की।

शंताल एच. शाह:

  • नवजीवन ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी, जिन्होंने गांधी के व्यंग्य चित्रों के संकलन में सहायता की।

शंकराचार्य (शंकराचार्य पिल्लई):

  • एक ग्राफिक कलाकार और कार्टूनिस्ट, जिन्होंने गांधी के व्यंग्य चित्रों के संकलन और प्रसंस्करण में सहायता की।

इंदर जीत:

  • एक व्यक्ति जिन्होंने गांधी के व्यंग्य चित्रों के संकलन और प्रसंस्करण में सहायता की।

ट्रेवर ड्रीबर्ग:

  • एक व्यक्ति जिन्होंने गांधी के व्यंग्य चित्रों के संकलन और प्रसंस्करण में सहायता की।

एस.पी. गुलाटी:

  • एक व्यक्ति जिन्होंने गांधी के व्यंग्य चित्रों के संकलन और प्रसंस्करण में सहायता की।

जॉर्ज बर्नार्ड शॉ:

  • आयरिश नाटककार और राजनीतिक कार्यकर्ता। गांधी के उनके बारे में उच्च विचार थे, और दोनों के विचार शाकाहार, शिक्षा, श्रम की गरिमा, और युद्ध जैसे विषयों पर समान थे।

रेवरेंड चार्ल्स एंड्रयूज (चार्ली):

  • एक ईसाई मिशनरी और गांधी के करीबी दोस्त, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में गांधी के साथ काम किया और उन्हें एक 'नैतिक प्रतिभा' के रूप में वर्णित किया।

माडेलीन स्लेड (मीराबेन):

  • गांधी की एक समर्पित अनुयायी।

पोप जॉन पॉल II:

  • कैथोलिक चर्च के प्रमुख, जिन्होंने गांधी के विचारों को दोहराया कि ईसाई धर्म को भारतीय आध्यात्मिकता के साथ जुड़ना चाहिए।

जोहान रस्किन:

  • लेखक जिनके सिद्धांतों ने गांधी के सामाजिक दर्शन 'सर्वोदय' को प्रभावित किया।

स्वामी दयानंद सरस्वती:

  • आर्य समाज आंदोलन के संस्थापक, जिन्होंने हिंदू धर्म में 'शुद्धि' कार्यक्रम शुरू किया।

जस्टिन (अस्पष्ट):

  • एक व्यक्ति जिसका मिट्टी खाने और दस्त लाने के लिए रेत के उपयोग पर उद्धरण 'आरोग्य की कुंजी' और 'कुदरती उपचार' में उल्लेख किया गया है।

डॉ. मेहता:

  • गांधी के मित्र, जिन्होंने गरीबों के लिए प्राकृतिक उपचार केंद्र बनाने में मदद की।

जहाँगीरजी पटेल:

  • डॉ. मेहता और गांधी के साथ प्राकृतिक उपचार केंद्र की स्थापना में शामिल एक व्यवहार-कुशल व्यक्ति।

वैद्यराज श्री गणेशशास्त्री जोशी:

  • एक आयुर्वेद चिकित्सक जिन्होंने रामनाम को प्राकृतिक उपचार में एक विशेष स्थान दिया।

रामकृष्ण परमहंस:

  • एक हिंदू संत जिन्हें भगवान का अवतार माना जाता था, लेकिन कैंसर से उनकी मृत्यु हो गई।

जॉर्ज मिशेल:

  • अमेरिकी सीनेटर और राजनयिक, जिन्हें राष्ट्रपति ओबामा द्वारा मध्य पूर्व में दूत नियुक्त किया गया था।

राहेल कोरी:

  • एक युवा अमेरिकी यहूदी लड़की जिसने मार्च 2003 में राफा में एक फिलिस्तीनी घर को टूटने से बचाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया।

राधाकृष्णन:

  • एक व्यक्ति जिसका नाम गांधी के नेतृत्व पुस्तक में उद्धरणों के लिए श्रेय सूची में है।

आनंद टी. हिंगोरानी:

  • एक व्यक्ति जिसका नाम गांधी के नेतृत्व पुस्तक में उद्धरणों के लिए श्रेय सूची में है।

चैंग:

  • एक व्यक्ति जिसका नाम गांधी के नेतृत्व पुस्तक में उद्धरणों के लिए श्रेय सूची में है।

डी.जी. तेंदुलकर:

  • एक व्यक्ति जिसका नाम गांधी के नेतृत्व पुस्तक में उद्धरणों के लिए श्रेय सूची में है।

जवाहरलाल:

  • एक व्यक्ति जिसका नाम गांधी के नेतृत्व पुस्तक में उद्धरणों के लिए श्रेय सूची में है।

कमलादेवी चट्टोपाध्याय:

  • गांधी की शिष्या, जिन्होंने हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवित करने में अभूतपूर्व योगदान दिया।

एस.आर. मेहरा:

  • एक व्यक्ति जिसने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में भारत के शामिल होने के गांधी के फैसले के बारे में टिप्पणी की।

राजमोहन गांधी:

  • एक व्यक्ति जिसने भारत-पाकिस्तान विभाजन पर गांधी की दूरदर्शिता के बारे में टिप्पणी की।

विभाजन:

  • बंगाल विभाजन और धार्मिक आधार पर मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा का गठन।

विनोबा भावे:

  • एक आध्यात्मिक नेता जिन्होंने गांधी के आंदोलन में व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू किया।

तेज बहादुर सप्रू:

  • एक उदारवादी नेता जिन्होंने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभाई।

मुहम्मद अली जिन्ना:

  • ऑल-इंडिया मुस्लिम लीग के नेता, जिन्होंने पाकिस्तान के निर्माण की मांग की और भारतीय विभाजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

लॉर्ड वेवेल:

  • भारत के वायसराय (1943-1947), जिन्होंने संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए भारतीय नेताओं को शिमला आमंत्रित किया।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी:

  • एक भारतीय राजनेता जिन्होंने अप्रैल 1942 में पाकिस्तान के निर्माण का समर्थन करने का प्रस्ताव रखा।

मास्टर तारा सिंह:

  • अकाली दल के नेता, जिन्होंने सिखों के हितों पर समझौता होने पर गंभीर परिणामों की चेतावनी दी।

जॉर्ज पंचम:

  • ब्रिटिश सम्राट, जिनसे गांधी ने लंदन में मुलाकात की।

डॉ. पी.सी. रॉय:

  • एक भारतीय वैज्ञानिक जिसका उल्लेख गांधी के शिक्षा पर विचारों में किया गया है।

विल्बरफॉर्स:

  • एक व्यक्ति जिसका उल्लेख गांधी के अहिंसा पर विचारों में किया गया है।

जनरल करियरप्पा:

  • एक भारतीय सेना अधिकारी जिसने सशक्त सेना की आवश्यकता पर गांधी के साथ चर्चा की।

पराबू सिंह:

  • एक व्यक्ति जिसने लेडीस्मिथ की घेराबंदी के दौरान तोप की गोलाबारी की चेतावनी देकर शहर के निवासियों के जीवन को बचाने में मदद की।

सोराबजी:

  • गांधी के दक्षिण अफ्रीकी संघर्षों में एक साथी, जो गोखले से भी मिले थे।

हेनरिक ड्यूक (प्रोफेसर ड्यूक):

  • गांधी के एक मित्र जिनके घर वे लंदन में रहते थे।

श्री वेस्ट:

  • गांधी के एक अंग्रेज मित्र, जिन्हें गांधी ने विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया।

श्री पोलक:

  • गांधी के एक अंग्रेज मित्र, जिन्हें गांधी ने विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया।

सरोजिनी नायडू:

  • एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता और कवि, जिन्होंने 6 अप्रैल को चौपाटी बीच पर गांधी के साथ एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया।

महादेव देसाई:

  • गांधी के सचिव।

एस. श्रीनिवास शास्त्री:

  • भारत-सेवक-समिति के अध्यक्ष, जिन्होंने गांधी के ऑपरेशन के दौरान एक सार्वजनिक बयान तैयार करने में मदद की।

डॉ. पाठक:

  • गांधी के मित्र, जिन्होंने गांधी के ऑपरेशन के दौरान एक सार्वजनिक बयान तैयार करने में मदद की।

रामानुज:

  • एक दार्शनिक जिनका उल्लेख गांधी ने ईश्वर के अस्तित्व पर अपने विचारों में किया है।

जेनायोन (जैनों):

  • जैन धर्म के अनुयायी, जिनका उल्लेख गांधी ने ईश्वर के गैर-सृष्टिकर्ता होने की धारणा पर अपने विचारों में किया है।

टी.के. माधवन:

  • एक नेता जिन्होंने गांधी से अस्पृश्यता को खत्म करने के लिए समर्थन मांगा।

डॉ. सी.पी. रामास्वामी अय्यर:

  • त्रावणकोर के प्रधान मंत्री, जो रियासतों की जनता के लिए अधिक नागरिक अधिकार प्राप्त करने के गांधी के आंदोलन के कट्टर विरोधी थे।

माली:

  • एक कार्टूनिस्ट, जिसने गांधी के 'महान आत्मा का बोझ' और 'महात्मा गांधी' के व्यंग्य चित्रों को चित्रित किया।

सुजाता:

  • एक व्यक्ति जिसका नाम 'गांधी की नैतिकता' और 'महात्मा का अध्यात्म' पुस्तकों में लेखक के रूप में उल्लेख किया गया है।

अमृतलाल ठाकोरदास नानावटी:

  • 'मंगल-प्रभात' के अनुवादक।

विवेक जितेंद्र देसाई:

  • नवजीवन मुद्रणालय के प्रकाशक।

आर.के. प्रभु:

  • 'सत्य ही ईश्वर है' पुस्तक के संपादक।

हार्दिक वी. भट्ट:

  • 'गाय और गोशाला' के अनुवादक।

सोनल पारिख:

  • 'गाय और गोशाला' के संकलनकर्ता।




प्रमुख शब्दों की शब्दावली

  • अनासक्तियोग (Anasaktiyoga): गीता के 56 अधिकरणों पर आधारित गांधीजी का भाष्य, जो कर्मफल की आसक्ति से मुक्ति पर बल देता है।

  • फलत्याग (Phaltyag): कर्म के परिणाम की इच्छा के बिना कर्म करना, परिणाम की आसक्ति का अभाव।

  • कर्मयोग (Karmayoga): मन और इंद्रियों को नियंत्रित रखते हुए, बिना आसक्ति के कर्म करना।

  • लोक-संग्रह (Lok-Sangrah): समाज को एक साथ बनाए रखना, जनता का कल्याण।

  • वासना (Vasana): इच्छाएँ या प्रवृत्तियाँ जो बुद्धि को भ्रमित करती हैं।

  • प्रणिपात (Pranipat): नम्रता और विवेक।

  • परिप्रश्न (Pariprashna): बार-बार प्रश्न पूछना, ज्ञान प्राप्ति के लिए जिज्ञासा।

  • गुणातीत (Gunatit): सत्त्व, रजस और तमस - इन तीनों गुणों से परे की स्थिति।

  • अश्वत्थ वृक्ष (Ashvattha Vriksha): संसार को दिया गया नाम, जिसकी क्षणभंगुरता को दर्शाता है।

  • पुरुषोत्तम-योग (Purushottama-yoga): भगवान का उत्तम स्वरूप जो क्षर (नश्वर) और अक्षर (अविनाशी) से परे है।

  • आसुरी स्वभाव (Asuri Svabhav): राक्षसी या दुष्ट प्रवृत्ति, जिसमें काम, क्रोध और लोभ प्रमुख होते हैं।

  • आरोग्य की कुंजी (Arogya ki Kunji): गांधीजी द्वारा स्वास्थ्य और भोजन पर लिखित पुस्तक।

  • चद्दर स्नान (Chaddar Snan): गीली चादर लपेटकर पसीना लाने का एक प्राकृतिक उपचार।

  • आश्रम-भजनावली (Ashram-Bhajanavali): आश्रम में गाए जाने वाले भजनों का संग्रह, जिसमें आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षाएं हैं।

  • श्रेय (Shrey): आत्मिक कल्याण, जो दीर्घकालिक लाभ देता है।

  • प्रेय (Prey): लौकिक सुख, जो तात्कालिक और क्षणभंगुर होता है।

  • ब्रह्मचर्य (Brahmacharya): सभी इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण, न केवल यौन संयम।

  • ट्रस्टीशिप (Trusteeship): गांधीजी का आर्थिक सिद्धांत, जिसमें धनवानों को अपनी संपत्ति को समाज के न्यासी (ट्रस्टी) के रूप में रखने का आग्रह किया जाता है।

  • अहिंसा (Ahimsa): प्रेम, दया और क्षमा, किसी भी प्राणी को मन, वचन या कर्म से हानि न पहुँचाना।

  • सत्याग्रह (Satyagraha): सत्य पर आधारित अहिंसक प्रतिरोध, अन्याय के खिलाफ नैतिक शक्ति का उपयोग।

  • स्वदेशी (Swadeshi): अपने देश में बनी वस्तुओं का उपयोग करना और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना।

  • ग्राम स्वराज्य (Gram Swaraj): गाँवों को आत्मनिर्भर और स्वयं-शासित इकाइयाँ बनाना।

  • बुनियादी तालीम (Buniyadi Taleem): गांधीजी की शिक्षा पद्धति, जो शारीरिक श्रम और हस्तशिल्प को शिक्षा का केंद्र बनाती है।

  • रामनाम (Ramnam): ईश्वर का एक नाम, जिसका जप आध्यात्मिक और शारीरिक शुद्धि के लिए किया जाता है।

  • आंतरिक चेतना (Antarik Chetana): अंतरात्मा की आवाज या अंतर्ज्ञान, जो सही मार्ग दिखाता है।

  • स्पृश्यता-अस्पृश्यता (Spryshyata-Aspryshyata): छूने योग्य और अछूत का भेद, जिसका गांधीजी ने घोर विरोध किया।

  • वर्ग-संघर्ष (Varg-Sangharsh): विभिन्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों के बीच का संघर्ष, जिसका गांधीजी ने अहिंसक समाधान सुझाया।

  • सेवाग्राम (Sevagram): गांधीजी द्वारा स्थापित आश्रम, जो उनके रचनात्मक कार्यक्रमों का केंद्र था।

  • शोधग्राम (Shodhgram): एक स्थान जहाँ गांधीजी के सिद्धांतों पर आधारित शोध और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्य किए जाते हैं।

  • पर्दा-प्रथा (Parda-Pratha): महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से दूर रखने वाली प्रथा, जिसका गांधीजी ने विरोध किया।


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